पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१०१

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गोपालसिंह-बस यही चाहिए। हाँ, एक बात और भी कहनी है! तारा-वह क्या?

गोपालसिंह-मेरा हाल अभी तुम किसी से न कहना, क्योंकि अभी मैं गुप्त रह कर कई काम करना चाहता हूँ, इसी सबब से मैं तुम्हारे मकान में न आया, तुम्हें यहाँ बुलाकर जो कुछ कहना था कहा।

ताला-बहुत अच्छा, जैसा आपने कहा है वैसा ही होगा।

गोपालसिंह-अच्छा तो अब हम लोग जाते हैं।

किशोरी और कामिनी को तारा उस तिलिस्मी मकान में लिवा लाई। भूतनाथ और देवीसिंह पहुँचाने के लिए साथ आये और फिर चले गये।

तारा ने किशोरी और कामिनी को बड़ी इज्जत और खातिरदारी के साथ रखा। इन बेचारियों को अपनी जिन्दगी में तरह-तरह की तकलीफें उठानी पड़ी, इसलिए बहुत दुबली, दुःखी और कमजोर हो रही थीं। तरह-तरह की चिन्ताओं ने उन्हें अधमरा कर डाला था। अब मुद्दत के बाद यह दिन नसीब हुआ कि वे दोनों बेफिक्री के साथ अपनी हालत पर गौर करें और तारा को उसके मोहब्बताने बर्ताव पर धन्यवाद दें।

किशोरी पर कामिनी का और कामिनी पर किशोरी का बड़ा ही स्नेह था, इस समय दोनों एक साथ हैं और यह भी सुन चकी हैं कि कुँवर इन्द्रजीतसिंह और आनंदसिंह मायारानी की कैद से छूट गये और अब कुशलपूर्वक हैं, इसलिए एक प्रकार की प्रसन्नता ने उनकी जिन्दगी की मुझई हुई लता पर आशा रूपी पानी के दो-चार छींटे डाल दिये थे और अब उन्हें ईश्वर की कृपा पर बहत-कुछ भरोसा हो चला था, परन्तु यह जानने के लिए दोनों ही का जी बेचैन हो रहा था कि मायारानी को हम लोगों से इतनी दुश्मनी क्यों है और वह स्वयं कौन है, क्योंकि कैद के बाद देवीसिंह से यह बात न पूछ सकी थी, और न इसका मौका ही मिला था।

उस तिलिस्मी मकान में दो दिन और रात आराम से रहने के बाद तीसरे दिन संध्या के समय जब किशोरी और कामिनी को मकान की छत पर ले जाकर तारा दिलासा और तसल्ली देने के साथ ही साथ चारों तरफ की छटा दिखा रही थी, किशोरी को मायारानी का हाल पूछने का मौका मिला और इस बात की भी उम्मीद हुई कि तारा सब बात अवश्य सच-सच कह देगी। अस्तु किशोरी ने तारा की तरफ देखा और कहा

किशोरी–बहिन तारा, निःसन्देह तुमने हमारी बड़ी खातिर और इज्जत की, तुम्हारी बदौलत हम लोग यहाँ बड़े चैन और आराम से हैं जिसकी अपनी भौंडी किस्मत से कदापि आशा न थी। और ईश्वर की कृपा से कुछ-कुछ यह भी आशा हो गई है कि हम लोगों के दिन अब शीघ्र ही फिरेंगे। इस समय मेरे दिल में बहुत-सी बातें ऐसी हैं, जिनका असल भेद मालूम न होने के कारण जी बेचैन हो रहा है, अगर तुम कुछ बताओ तो..

तारा-वे कौन-सी बातें हैं, कहिये, जो कुछ मैं जानती हूँ अवश्य बताऊँगी।

च० स०-3-6