पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११९

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भी हमारे दुश्मन का यदि तुम साथ दोगे, पक्ष करोगे, हमारी कैद से निकाल ले जाने का उद्योग करोगे या केवल राय देकर भी सहायता करोगे, तो तुम्हारे लिए अच्छा न होगा। तुम चुनारगढ़ के तहखाने में अपने को हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए पाओगे, बल्कि आश्चर्य नहीं कि इससे भी बढ़कर तुम्हारी दुर्दशा की जाय। हाँ, यदि तुम दुनिया में नेकी, ईमानदारी और योग्यता के साथ रहोगे तो ईश्वर भी तुम्हारा भला करेगा। हम लोग ईमानदार नेक और योग्य पुरुष का साथ देने के लिए हरदम कमर कसे तैयार रहते हैं। इसके सिवाय एक बात और कहनी है सो भी सुन लो। दो अदद तिलिस्मी खंजर, जो हम लोगों की मिलकियत हैं, मायारानी और नागर के कब्जे में चले गये हैं। इस समय दारोगा को साथ लेकर मायारानी तुम्हारे यहाँ मदद माँगने लिए आई है। सो खैर, उससे तो कुछ मत कहो, उसके पास जो हमारे खंजर हैं, हम ले लेंगे, कोई चिन्ता नहीं, मगर नागर के पास जो तिलिस्मी खंजर था, वह तुम्हारे एक ऐयार के पास है। जो श्यामलाल बनकर नागर को गिरफ्तार करने गया था और उसे गिरफ्तार कर लाया है। बेशक वह खंजर तुम्हारे पास दाखिल किया जायगा, मगर तुम्हें मुनासिब है कि उसे तुरंत हमारे हवाले करो। कल ठीक दोपहर के समय हम खोह के मुहाने पर मिलने के लिए तैयार रहेंगे जो तुम्हारे इस मकान में आने के पहले दरवाजे के समान है। यदि उस समय तिलिस्मी खंजर लिए तुम हमसे न मिलोगे तो हम समझेंगे कि तुम मायारानी और दारोगा का साथ देने के लिए तैयार हो गये, फिर जो-कुछ होगा देखा जायगा।

मिती 13 प्रथम ऋतु।
तुमको होशियार करने वाला
 
संवत् 412 कु॰।
एक बालक―
 
भैरोंसिंह ऐयार"
 

पत्र पढ़कर दारोगा ने फिर इन्द्रदेव के हाथ में दे दिया। उस समय दारोगा का चेहरा डर, चिन्ता और निराशा के कारण पीला पड़ गया था और भविष्य पर ध्यान देने ही से वह अधमरा हो गया था। भैरोंसिंह के पत्र में तिलिस्मी खंजर का जिक्र था इसलिए दारोगा ने इन्द्रदेव की उँगलियों पर निगाह दौड़ा कर उसी समय देख लिया था कि तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी उसकी उंगली में मौजूद है, अतएव उसे निश्चय हो गया कि भैरोंसिंह से कोई बात छिपी नहीं है, इन्द्रदेव सहायता करते दिखाई नहीं देते और अपना भविष्य बुरा नजर आता है, दारोगा इसी विचार में सिर झुकाये हुए कुछ देर तक खड़ा रहा और इन्द्रदेव उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव को गौर से देखता रहा। आखिर इन्द्रदेव ने कहा―"मैं समझता हूँ कि इस चिट्ठी के प्रत्येक शब्द पर आपने गौर किया होगा और मतलब पूरा-पूरा समझ गये होंगे?"

दारोगा―जी हाँ।

इन्द्रदेव―खैर, तो अब मुझे इतना ही कहना है कि यदि इस समय आपके बदले में कोई दूसरा आदमी मेरे सामने होता तो उसे तुरन्त ही निकलवा देता, परन्तु आप मेरे गुरुभाई हैं। इसलिए तीन दिन की मोहलत देता हूँ, इस बीच में आप यहाँ रहकर अपने भले-बुरे को अच्छी तरह सोच लें और फिर जो कुछ करने का इरादा हो