पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१३९

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में ले गई और तीनों कैदियों से अपने मतलब की बातें लिखवा लीं।

कमलिनी के जाने के बाद केवल तारा की मौजूदगी में भगवानी को अपना काम करने का बहुत अच्छा मौका मिला। उसने गुप्त रीति से कई नौकर रखे और उनके जरिये से माधवी, मनोरमा और शिवदत्त के आदमियों को, जो छिति र-बितिर हो गये थे, इकट्ठा कराया, तथा इस बात से होशियार कर दिया कि तुम्हारे मालिक लोग यहाँ कैद हैं।

धीरे-धीरे बन्दोबस्त करके भगवानी ने सामान दुरुस्त कर लिया और एक दिन सुरंग की राह से तीनों कैदियों को निकाल बाहर किया। आज जो इतने दुश्मन इस मकान को घेरे हुए हैं या जो कुछ वे लोग कर रहे हैं सब भगवानी ही की करामात है। इस समय भगवानी ही ने किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द कर दिया है। वह चाहती है कि दुश्मन लोग इस मकान में घुस आवें और मनमानी चीजें लूट ले जायें, मगर कीमती चीजें जवाहिर इत्यादि मैं पहले ही से बटोर कर अलग रख दूँ, और जब दुश्मन लोग यहाँ घुस आबें तो उन्हें लेकर चल दूँ। शिवदत्त, माधवी और मनोरमा के हाथ का लिखा हुआ परवाना मौजूद ही है अस्तु कमलिनी के दुश्मनों में मुझे कोई भी नहीं रोक सकता। यह भगवानी का थोड़ा-सा हाल इस जगह हमने इसलिए लिख दिया कि बीती बहुत-सी बातें समझने में हमारे पाठकों को कठिनाई न पड़े।

किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द करके जब भगवानी कैदखाने के बाहर निकली तो कोठरी में ताला लगा दिया और ताली अपने कब्जे में रखी, इसके बाद हाथ में लालटेन लेकर मकान की छत पर चढ़ गई और लालटेन को घुमा-फिराकर दुश्मनों को इशारे ही इशारे में कुछ कहा। मालूम होता है कि पहले ही इस इशारे की बातचीत पक्की हो चुकी थी क्योंकि लालटेन का इशारा पाते ही दुश्मनों ने खुश होकर अपना काम तेजी से करना शुरू किया अर्थात् तालाब पाटने में बहुत फुर्ती दिखाने लगे। एक दफे तो भगवानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि चारों पुतलियों को खड़ी करके घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दे, जिसमें दुश्मन लोग यहाँ शीघ्र ही आ जायें, मगर तुरन्त ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसे यह बात सूझ गयी कि यदि मैं घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दूँगी तो कमलिनी के नौकरों को तुरत मुझ पर शक हो जायगा और फिर बना-बनाया मामला बिगड़ जायगा।

अब कम्बख्त भगवनिया (भगवानी) इस फिक्र में लगी कि दुश्मनों के घर में आने के पहले ही यहाँ से अच्छी-अच्छी कीमती चीजें बटोर ली जायें और जब दुश्मन इस मकान में घुस आवें, तो ले लपेट के चलती बनूं। शिवदत्त, माधवी और मनोरमा की चिट्ठियों की बदौलत, जो मेरे पास हैं, मुझे कोई भी न रोकेगा।

कमलिनी की लौंडियों और नौकरों को इस बात का गुमान भी न था कि नमकहराम भगवानी यहाँ वालों को चौपट कर रही है या उसने किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द कर दिया है। वे लोग यही जानते थे कि किशोरी और कामिनी को किसी खास काम के लिए तारा अपने साथ लेती गई है।

रात बीत गई, दूसरा दिन समाप्त हो गया, बल्कि दूसरे दिन की रात भी गुजर