पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५१

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बात हो गई कि चुन्नीलाल तिलिस्मी मकान के अन्दर आया और मामूली तौर पर देखभाल कर चला गया, बेचारी किशोरी, कामिनी और तारा की कुछ सुध न ली। खैर सब्र कीजिये और जरा हमारे साथ फिर उस जगह चलिये, जहाँ श्यामसुन्दर, भगवनिया, भैरोंसिंह, कमलिनी, लाड़िली, देवीसिंह और भूतनाथ को छोड़ आये हैं।

जिस समय भगवनिया ने कमलिनी को अपने सामने देखा वह बदहवास हो गई, कलेजा काँपने लगा, साँस में रुकावट पैदा हुई और मौत की सी तकलीफ मालूम होने लगी। उसने चाहा कि कमलिनी के पैरों पर गिर कर अपना कसूर माफ करावे, मगर डर के मारे उसके खून की हरकत बिल्कुल बंद हो गई थी इसलिए वह कुछ भी न कर सकी बल्कि क्रमशः बढ़ते ही जाने वाले खौफ के सबब बेदम होकर पीछे की तरफ जमीन पर गिर पड़ी।

भगवानी की यह अवस्था देखकर कमलिनी को आश्चर्य मालूम हुआ क्योंकि उसने अभी तक श्यामसुन्दरसिंह और भगवानी का हाल कुछ न जाना था। भैरोंसिंह ने भूतनाथ को रोशनी करने के लिए कह कर संक्षेप में वह सब हाल कमलिनी को कह सुनाया जो भगवानी के विषय में श्यामसुन्दरसिंह से सुना था। कमलिनी को हद से ज्यादा क्रोध चढ़ आया मगर वह बुद्धिमान थी और इस बात को खूब समझती थी कि ऐसे मौके पर क्रोध के ऊपर अधिकार न कर लेने से प्रायः तकलीफ और नुकसान हुआ करता है, कहीं ऐसा न हो कि डर के मारे या विशेष धमकाने से भगवानी का दम निकल जाये या वह जिसका दिल और दिमाग बहुत ही कमजोर है पागल हो जाय जैसा कि प्रायः हुआ करता है, तो बड़ी ही मुश्किल होगी और किशोरी कामिनी तथा तारा का कुछ भी पता न लगेगा।

रोशनी हो जाने पर जब कमलिनी ने भगवानी की सूरत देखी तो मालूम हुआ कि उस पर हद से ज्यादा खौफ पड़ चुका है। आँखें बन्द हैं, चेहरे पर जर्दी छाई हुई है, और बदन काँप रहा है। कमलिनी ने कुछ ऊँची आवाज में कहा, "होश में आ और मेरी बातें सुन, एकदम नाउम्मीद न हो, कदाचित तेरी जान बच जाय!"

इस आवाज ने बेशक अच्छा असर किया जैसा कि कमलिनी ने सोचा था, 'कदाचित् तेरी जान बच जाय' यह सुनकर भगवानी ने आंखें खोल दी! कमलिनी ने फिर कहा, "यद्यपि तूने बहुत बड़ा कसूर किया है मगर मैं वादा करती हूँ कि यदि तू झटपट सच्चा-सच्चा हाल कह देगी तो तेरी जान छोड़ दी जायगी।"

अब भगवानी उठ बैठी और अपने को सँभाल कर हाथ जोड़ के कांपती हुई आवाज के साथ बोली, 'क्या मेरी जान छोड़ दी जायगी?"

कमलिनी-हां, छोड़ दी जायगी यदि तू सच्चा हाल कहकर अपने दोष को स्वीकार कर लेगी और किशोरी, कामिनी तथा तारा का ठीक-ठीक पता बता देगी।

भगवानी—(कमलिनी के पैरों पर गिरकर और फिर खड़ी होकर) बेशक मैं कसूरवार हूँ। जो कुछ मैंने किया है मैं साफ कह दूँगी। अफसोस लालच में पड़कर मैंने बहुत बुरा किया था। मुझे शिवदत्त ने धोखा दिया, बिना समझे-बूझे मैं..

कमलिनी-बस-बस, ज्यादा बात बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं, जो कुछ कहना है जल्दी मे कह दे, विलम्ब होना तेरे लिए अच्छा नहीं है।