पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५३

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लापरवाही के साथ बात-बात पर कसमें खाया करता है, वह वास्तव में झूठा और खोटा होता है। मायारानी की सुहबत के सबब से यदि वह मेरे इस तिलिस्मी मकान के तहखाने के भेद से अनजान रहती तो मैं स्वयं उसे वह भेद कदापि न बताती। तिस पर भी खुटका बना रहने के कारण मैं स्वयं जब ताला खोलकर उस तहखाने और सुरंग में जाती थी तो ताले को जमीन पर नहीं रख देती थी बल्कि कुण्डी में लगाकर ताली अपने पास रख लेती थी जिससे तहखाने या सुरंग में जाने के बाद पीछे से कोई आदमी ताला बन्द करना तो दूर रहा, जंजीर भी न चढ़ा सके।

देवीसिंह-बेशक यह बड़ी चालाकी की बात है। जब खाली कुण्डी में ताला लगा रहेगा तो किसी तरह कोई जंजीर नहीं चढ़ा सकता।

कमलिनी-और यह बात तारा को मालूम थी मगर अफसोस, उसने इस पर कुछ ध्यान न दिया और धोखा खा गई। मैं बहुत दिनों से इस फिक्र में थी कि भगवानी को अच्छी तरह जांच कर खटका मिटा लिया जावे लेकिन इतनी फुरसत ही न मिली। दस दिन निश्चिन्त होकर घर में बैठने की कभी नौबत ही न आई। मगर आश्चर्य की बात है कि भगवानी ने इतनी खोटी होने पर भी हमारे यहाँ की कोई बात मायारानी के कान तक न पहुँचाई क्योंकि अभी तक कोई ऐसी बात पाई नहीं गई जिससे मैं समझती कि मेरा फलाँ भेद मायारानी को मालूम हो गया है।

भैरोंसिंह-यह बात कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मौका मिलने पर आदमी की तबीयत यकायक बदल जाय। एक पुरानी मसल चली आती है कि 'आदमी का शैतान आदमी होता है।' इसका मतलब यही है कि चालाक और धूर्त आदमी अपनी लच्छेदार बातों में फंसाकर किसी आदमी की तबीयत को बदल सकता है। मन बड़ा ही चंचल है, इसे स्वाधीन रखना कोई मामूली बात नहीं है। बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों का सैकड़ों वर्षों का उद्योग भी, जो केवल मन को स्वाधीन करने के विषय में किया गया था, बात-की-बात में वृथा हो चुका है। हाँ, नेक और बद आदमियों के मन में इतना भेद अवश्य होता है कि भाव बदल जाने या धोखे में पड़कर किसी बराई के हो जाने पर नेक आदमी तुरत चौकन्ना हो जाता है और सोचता है कि 'बेशक यह काम मुझसे बुरा हो गया, मगर बुरे मनुष्य में जिसने अपने मन पर अधिकार जमाने के लिए कुछ उद्योग न किया हो, यह बात नहीं होती। जो आदमी इस बात को सोचता कि मन क्या वस्तु है, इसकी चंचलता कैसी है, यह कितनी जल्दी बदल जाने की सामर्थ्य रखता है, या उसे अधिकार में न रखने से क्या-क्या खराबियां हो सकती हैं, उसके हृदय में एक ऐसी ताकत पैदा हो जाती है जिसकी उत्पत्ति तो विचारशक्ति से है मगर यह कहना बहुत कठिन है कि वह स्वयं क्या पदार्थ है। उसका काम यह है कि मन की चंचलता या शिथिलता के कारण यदि कोई बुराई होना चाहती है तो वह विचित्र ढंग से खुटका पैदा कर तुरन्त खबर दे देता है कि यह काम बुरा है या तूने बुरा किया। यह विषय बड़ा गम्भीर है, ऐसे समय में अर्थात् राह चलते-चलते इस विषय को स्पष्ट रूप से मैं नहीं दिखा सकता मगर मेरे कहने का मतलब केवल यही है कि आदमी का शैतान आदमी होता है। आदमी अपने हमजिन्स की तबीयत को बेशक बदल सकता है हाँ यह