पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५५

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जिसके आगे थोड़ी ही दूर जाने के बाद कुछ ढलवां जमीन मिली मगर लाडिली और दोनों ऐयार कमलिनी के पीछे-पीछे चले ही गये। दो सौ कदम से ज्यादा न गये होंगे कि ये लोग एक गुफा के मुहाने पर पहुँच कर रुक गये। कमलिनी ने देवीसिंह से मोमबत्ती जलाने के लिए कहा और जब मोमबत्ती जल चुकी, तो सब उस खोह के अन्दर घुसे। खोह की अवस्था देखने से जाना जाता था कि वर्षों से इसकी जमीन ने किसी आदमी के पैर न चूमे होंगे बल्कि कह सकते हैं कि शायद किसी जंगली जानवर ने भी इसके अन्दर आने का साहस न किया होगा। थोड़ी ही दूर पर खोह का अन्त हुआ और इन लोगों ने अपने सामने लोहे का एक बन्द दरवाजा देखा। कमलिनी ने लाड़िली पर एक भेदभरी निगाह डाली और कहा, "इस दरवाजे का हाल राजा गोपालसिंह के सिवाय कोई भी नहीं जानता। मुझे तो खून से लिखी हुई किताब की बदौलत इसका हाल मालूम हुआ है, इसकी चाबी भी इसी जगह मौजूद है।" यह कह कर कमलिनी ने तिलिस्मी खंजर के कब्जे से दरवाजे के दाहिनी तरफ बचोंबीच की जमीन ठोंकी जो वास्तव में किसी धातु की थी, मगर मुद्दत से काम में न आने के कारण उसका रंग पत्थर के रंग में मिल गया था।

ठोंकने के साथ ही बित्ते भर का एक पल्ला अलग हो गया और उसके अन्दर हाथ डाल कर कमलिनी ने कोई पेंच दबाया और इसके साथ ही हल्की आवाज देता हुआ वह दरवाजा खुल गया। कमलिनी ने उस खिड़की को बन्द कर दिया जिसके अन्दर हाथ डाल कर पेंच घुमाया था और इसके बाद सभी को लिए दरवाजे के अन्दर चली गई।

दरवाजा खोलने के लिए जिस तरह की चाबी इस तरफ रखी थी उसी तरह की दरवाजे के दूसरी तरफ भी थी अर्थात् दूसरी तरफ भी उसी तरह की ताली और पेंच मौजूद था जिसे घुमा कर कमलिनी ने दरवाजा बन्द किया और साथियों को साथ लिए हुए आगे की तरफ बढ़ी। इन सभी को घंटे भर तक तेजी के साथ जाना पड़ा और इसके बाद मालूम हुआ कि सुरंग के दूसरे मुहाने पर पहुँच गये क्योंकि यहाँ भी उसी रंग-ढंग का दरवाजा बना हुआ था। कमलिनी ने उस दरवाजे को भी खोला और सभी को साथ लिये हुए अन्दर चली गई। यहाँ पर रास्ता बँट गया था अर्थात् एक सुरंग बाईं तरफ गई हुई थी और दूसरी दाहिनी तरफ। कमलिनी ने भैरोंसिंह और देवी सिंह की तरफ देख के कहा, "मुझे मालूम है कि दाहिनी तरफ जाने से हम लोग उस कोठरी में पहुंचेंगे जिसमें कैदी लोग कैद थे या जो कैदखाने के नाम से पुकारी जाती है, और बाईं तरफ जाने से हम लोग उस सुरंग के बीचोंबीच में पहुँचेंगे जिसमें किशोरी, कामिनी और तारा को भगवनिया ने फंसा रक्खा है। आप लोगों की क्या राय है किधर चलना चाहिए?"

देवीसिंह--हम लोगों को पहले उस सुरंग ही में चलना चाहिए जिसमें किशोरी कामिनी और तारा को जल्द देखें।

इस बात को सभी ने पसन्द किया और कमलिनी ने बाईं तरफ का रास्ता लिया। दो-चार कदम जाने के बाद भैरोंसिंह ने कहा, "मैं समझता है कि अब बीसपच्चीस कदम से ज्यादा न चलना होगा और उस ठिकाने पर पहुँच जायेंगे, जहाँ शीघ्र पहुँचने की इच्छा है!"