पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५६

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कमलिनी—यह बात तुमको कैसे मालूम हुई?

भैरोंसिंह-(छत और दोनों तरफ की दीवार की तरफ इशारा करके) देखिये छत और दीवान नम मालूम होती हैं, कहीं-कहीं पानी की बूंदें भी टपक रही हैं, इससे निश्चित होता है कि इस समय हम लोग तालाब के नीचे पहुँच गये हैं।

कमलिनी ने कहा, "ठीक है, तुम्हारा सबूत ऐसा नहीं है कि कोई काट सके।"

थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद एक छोटी-सी खिड़की मिली। इसका दरवाजा भी उसी ढंग से खुलने वाला था जैसा कि पहला और दूसरा दरवाजा, जिनका हाल हम ऊपर लिख आये हैं। कमलिनी ने दरवाजा खोला।

इस समय इन चारों का कलेजा धक-धक कर रहा था, क्योंकि अब ये लोग किशोरी, कामिनी और तारा की किस्मतों का फैसला देखने वाले थे और उनके दिलों का यह खुटका क्रमशः बढ़ता ही जाता था कि देखें बेचारी किशोरी, कामिनी और तारा को हम लोग किस अवस्था में पाते हैं! कहीं ऐसा न हुआ हो कि वे तीनों भूख-प्यास के दुःख को न सह कर इस दुनिया के कूच कर गई हों और इस समय उनकी लाशें सामने पड़ कर हम लोगों को भी दीन-दुनिया के लायक न रखें।

यहाँ पर एक मोमबत्ती और जला ली गई। दरवाजा खुला और ये चारों उसके अन्दर गये। आह, यहाँ यकायक जमीन पर सामने की तरफ तीन लाशें पड़ी हुई दिखाई दी जिन पर नजर पड़ते ही कमलिनी के मुँह से एक चीख निकल पड़ी और वह 'हाय' करके उन लोगों के पास जा पहुँची।

ये तीनों लाशें किशोरी, कामिनी और तारा की थीं जो भूख और प्यास की सताई हुई इस अवस्था को पहुँच गई थीं। तारा के बगल में तिलिस्मी नेजा जमीन पर पड़ा हआ था और उसके जोड़ की अंगूठी उसकी खूबसूरत उँगली में पड़ी हुई थी।

कमलिनी ने सबसे पहले किशोरी के कलेजे पर हाथ रक्खा। कलेजे की धड़कन बन्द थी और शरीर मुर्दे की तरह ठंडा था। कमलिनी की आँखों से आँसू की बूंदें गिरने लगीं, मगर जब उसने किशोरी की नब्ज पर हाथ रक्खा तो इसके साथ ही खुश होकर बोल उठी, "अहा, अभी नब्ज चल रही है! आशा है कि ईश्वर मेरी मेहनत को सफल करेगा!"

कमलिनी ने तारा और कामिनी की भी जांच की। दोनों ऐयारों ने भी सभी को गौर से देखा। किशोरी, कामिनी और तारा तीनों की अवस्था खराब थी, होश-हवास कभी न था, साँस बिल्कूल मालूम नहीं पड़ती थी, हाँ नब्ज का कुछ-कुछ पता लगता था जो बहुत ही बारीक और सुस्त चल रही थी। यद्यपि यह जान कर सभी को कुछ प्रसन्नता हुई कि ये तीनों अभी जीती हैं मगर फिर भी उन तीनों की अन्तिम अवस्था इस बात का निश्चय नहीं कर सकती थी कि इनकी जान निःसन्देह बच ही जायगी, और यही कारण था कि जिससे कमलिनी, लाडिली, देवीसिंह और भैरोंसिंह का कलेजा काँप रहा था और आँखें डबडबाई हुई थीं।

देवीसिंह ने अपने बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें लाल रंग का कोई अर्क था। उसी में से थोड़ा-थोड़ा अर्क उन तीनों के मुँह में (जो पहले ही से खुला हुआ था)