पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५७

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डाला और थोड़ी देर बाद फिर नब्ज पर हाथ रक्खा। नब्ज पहले से कुछ तेज मालूम हुई और सांस भी कुछ चलने लगी।

भैरोंसिंह-इन दोनों को यहाँ से बाहर निकाल कर मैदान में ले चलना चाहिए क्योंकि जब तक ठण्डी और ताजी हवा न मिलेगी इनकी अवस्था ठीक न होगी।

देवीसिंह-बेशक ऐसा ही है, इस सुरंग की बन्द हवा हमारे इलाज को सफल न होने देगी।

कमलिनी-तो पहले यही काम करना चाहिए।

इतना कहकर कमलिनी ने तारा की उँगली से तिलिस्मी नेजे के जोड़ की अँगूठी निकाल ली और भैरोंसिंह को देकर कहा, "इस अंगूठी को तुम पहन लो जिसमें इस तिलिस्मी नेजे को अपने पास रख सको, क्योंकि इन तीनों को बाहर ले जाने के बाद लाड़िली और देवीसिंह को साथ लेकर थोड़ी देर के लिए मैं तुमसे अलग हो जाऊँगी और किशोरी, कामिनी तथा तारा की हिफाजत के लिए तुम अकेले रह जाओगे।"

"मैं आपका मतलब समझ गया।" कह कर भैरोंसिंह ने अंगूठी लेकर अपनी उँगली में पहन ली।

कमलिनी-मेरे इस कहने से तुमने क्या मतलब निकाला? मेरा इरादा क्या समझे?

भैरोंसिंह-यही कि आप लोग माधवी, मनोरमा और शिवदत्त की शक्लें बना कर उन दुश्मनों को धोखा देना चाहते हैं क्योंकि वे लोग अभी तक बेहद उथल-पुथल मचाने पर भी आपके मकान के बाहर न हुए होंगे।

कमलिनी- शाबाश! तुम्हारी बुद्धि बड़ी तेज है, बेशक मेरा यही इरादा है।

दो दफा कर के हिफाजत के साथ चारों आदमियों ने किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग के बाहर निकाला और देवीसिंह तथा भैरोंसिंह बड़ी मुस्तैदी से किशरी, कामिनी और तारा का इलाज करने लगे। जब कमलिनी को इस बात का निश्चय हो गया कि अब इन तीनों की जान का खौफ नहीं है, तब वह देवीसिंह और लाड़िली को साथ लेकर फिर उसी सुरंग से घुसी। अबकी दफा वह कैदखाने वाली कोठरी में गई और वहाँ कार्रवाई का पूरा मौका पाकर इन तीनों ने माधवी, मनोरमा और शिवदत्त बनकर जो कुछ किया उसका हाल हम ऊपर के बयान में लिख चुके हैं।

पाठक महाशय, अब आप यह तो समझ ही गये होंगे कि दुश्मनों ने खोज ढूंढ़कर तहखाने में से जिन कैदियों को निकाला, वे वास्तव में माधवी, मनोरमा और शिवदत्त न थे, बल्कि कमलिनी, लाड़िली और देवीसिंह थे। खैर, अब इस तरफ आइये और किशोरी, कामिनी तथा तारा का हाल देखिये, जिनकी हिफाजत के लिए केवल भैरोंसिंह रह गये थे। ताकत पहुँचाने वाली दवाओं की बरकत से किशोरी, कामिनी और तारा ने उस समय आँखें खोली जब आसमान पर सुबह की सफेदी फैल चुकी थी। पूरब से निकलकर क्रमशः फैल जाने वाली लालिमा रात भर तेजी के साथ चमकने वाले सितारों और उनके सरदार चन्द्रदेव को सूर्यदेव की अवाई की सूचना दे रही थी, और इसी सबब से