पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८१

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कीमती हिस्सा आपके हवाले करता हूँ, आप जैसा चाहें उसके साथ बर्ताव करें, मगर मेरी एक प्रार्थना अवश्य स्वीकार करें।

देवीसिंह―वह क्या?

भूतनाथ―यही कि इस भेद के विषय में मेरी जुबान से कुछ कहलाने का उद्योग न करें और तहकीकात करने पर जो कुछ भेद आपको मालूम हों उन भेदों को भी बिना मेरी इच्छा के राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके दोनों कुमार, राजा गोपालसिंह, तारा और कमलिनी पर प्रकट न करें। बस इससे ज्यादा कुछ न कहकर आशा करता हूँ कि मुझे अपना कनिष्ठ भ्राता समझ कर इस दुष्ट के पंजे से छुटकारा दिलावेंगे। हाँ, एक बात कहना भूल गया, वह यह है कि इस दुष्ट को कैद करके आप बेफिक्र न रहियेगा, इसके मददगार लोग बड़े ही शैतान और पाजी हैं।

देवीसिंह―जो कुछ तुमने कहा, मुझे मंजूर है। मैं वादा करता हूँ कि जब तक तुम आज्ञा न दोगे तुम्हारे भेद अपने दिल के अन्दर रक्खूँगा और उद्योग करूँगा जिसमें तुम्हारी आत्मा निरोग हो और तुम स्वतन्त्र होकर विचार कर सको―अच्छा एक काम करो।

भूतनाथ―कहिये।

देवीसिंह―इस दुष्ट को तो मैं अपने कब्जे में करता हूँ, जहाँ मुनासिब समझूँगा ले जाऊँगा, तुम यहाँ से जाओ, कल सवेरे तालाब वाले तिलिस्मी मकान में जिसे दुश्मनों ने खराब कर डाला है मुझसे और कमलिनी से मुलाकात करो। इस बीच अगर हो सके तो श्यामसुन्दरसिंह को खोज निकालो और उसे भी अपने साथ उसी जगह लेते आओ। फिर जो कुछ मुनासिब होगा किया जायगा।

भूतनाथ―(चौंक कर) तो क्या ये सब बातें आप कमलिनी से कहेंगे?

देवीसिंह―हाँ यदि आवश्यकता होगी तो कहूँगा और इसमें तुम्हारा कुछ हर्ज नहीं है, परन्तु विश्वास रक्खो कि इन बातों का असल भेद, जिनका मैं पता भविष्य में लगाऊँगा, अपनी प्रतिज्ञानुसार किसी न कहूँगा।

भूतनाथ—(मजबूरी के ढंग से) बहुत अच्छा, मैं जाता हूँ।

भूतनाथ वहाँ से चला गया। देवी सिंह ने उस विचित्र मनुष्य की गठरी बाँधी और उस जगह आये जहाँ दोनों घोड़ों को छोड़ा था। घोड़ों पर जीन कसने के बाद एक पर उस आदमी को लादा और दूसरे पर आप सवार होकर उस तरफ रवाना हुए जहाँ कमलिनी, किशोरी, कामिनी इत्यादि को छोड़ा था।


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दिन ढल चुका था सब देवीसिंह विचित्र मनुष्य की गठरी और दोनों घोड़ों को लिए हुए वहाँ पहुँचे जहाँ किशोरी, कामिनी, तारा, कमलिनी, लाड़िली और भैरोंसिंह

च॰ स॰-3-11