पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८५

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ही होंगी?

देवीसिंह―हाँ, सुनी तो हैं मगर मुझे विश्वास नहीं है कि भूतनाथ ने जो कहा, सब सच कहा होगा।

तेजसिंह―ठीक है, रात से मेरा खयाल भी भूतनाथ की तरफ से ऐसा ही हो रहा है, खैर मैं स्वयं सब हाल तुम लोगों से कहता हूँ। मैं तारासिंह को साथ लिये हुए रोहतासगढ़ गया था। उस समय मैं रोहतासगढ़ ही में था जब यह खबर पहुँची कि कमलिनी के तिलिस्मी मकान को दुश्मनों ने घेर लिया है और उस पर अपना दखल जमाना ही चाहते हैं। मैंने तुरन्त थोड़े से फौजी सिपाहियों को दुश्मन से मुकाबला करने के लिए रवाना किया और दो घंटे बाद तारासिंह को साथ लेकर सूरत बदले हुए खुद भी उसी तरफ रवाना हुआ। रात की पहली अँधेरी थी जब हम दोनों एक जंगल में पहुँचे और उसी समय घोड़े के टापों की आवाज आने लगी। यह आवाज पीछे की तरफ से आ रही थी और क्रमशः पास होती जाती थी। हम दोनों यह सोच कर पेड़ की आड़ में खड़े हो गये कि जब यह सवार आगे निकल जाय तब हम लोग चलेंगे। मगर जब यह घोड़ा उस पेड़ के पास पहुँचा जिसकी आड़ में हम दोनों छिपे खड़े थे तो हमने देखा कि उस घोड़े पर एक नहीं बल्कि दो आदमी सवार हैं जिनमें से एक औरत है जो पीछे की तरफ बैठी हुई है। उसका औरत होना मुझे इस तरह मालूम हुआ कि जब घोड़ा उस पेड़ के पास पहुँचा जिसकी आड़ में हम लोग छिपे हुए थे तो उस औरत ने कहा, “जरा ठहर जाइये, मैं इस जगह उतरूँगी और दस-बारह पल के लिए आपसे जुदा होऊँगी।” बस इस आवाज ही से मुझे निश्चय हो गया कि वह औरत है। घोड़ा रोक कर सवार उतर पड़ा और हाथ का सहारा देकर उस औरत को भी उसने उतारा।

इतना कह कर तेजसिंह रुक गये और कमलिनी की तरफ देख कर बोले, “मगर मुझे इस समय अपना किस्सा कहते अच्छा नहीं मालूम होता।

कमलिनी―सो क्यों?

तेजसिंह―इसलिए कि मैं एक तरफ बेचारी तारा को बेहोश देखता हूँ, दूसरी तरफ किशोरी और कामिनी को ऐसी अवस्था में पाता हूँ जैसे वर्षों की बीमार हों और तुमको भी सुस्त और उदास देखता हूँ, इन कारणों से मेरी यह इच्छा होती है कि पहले इस तरफ का हाल सुन लूँ।

कमलिनी―आपका कहना बहुत ठीक है, फिर भी मैं यही चाहती हूँ कि पहले आपका हाल सुन लूँ।

तेजसिंह―खैर, मैं भी अपना किस्सा मुख्तसिर ही में पूरा करता हूँ।

इतना कहकर तेजसिंह ने फिर कहना शुरू किया―

“जब वह औरत उस काम से छुट्टी पा चुकी जिसके लिए उतरी थी, तो घोड़े के पास आई और अपने साथी से बोली, “भूतनाथ ने जिस समय आपको देखा उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई।” इसका जवाब उस आदमी ने जो वास्तव में (विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके) यही हजरत थे, यों दिया, “बेशक ऐसा ही है क्योंकि भूतनाथ मुझे मुर्दा समझे हुए था। देखो तो सही आज मेरे और उसके बीच कैसी निपटती है। मैं उसे