पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९१

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कमलिनी-मुझे यह नहीं मालूम था कि भूतनाथ के हाथ से ऐसे-ऐसे अनुचित कार्य हुए हैं। उसने यही कहा था कि मैं राजा वीरेन्द्रसिंह का दोषी हूँ और इस बात का सबूत मायारानी और उसकी सखी मनोरमा के कब्जे में है। जहाँ तक मुझसे बना मैंने भूतनाथ का पक्ष करके उन सबूतों को गारत कर दिया मगर मैं हैरान थी कि भूतनाथ को धमकाने, कब्जे में रखने या तबाह करने के लिए मायारानी ने इतने सबूत क्यों बटोर रक्खे हैं या उसे भूतनाथ की परवाह इतनी क्यों हुई! मगर आज उस बात का असल भेद खुल गया। इस समय मालूम हो गया कि लक्ष्मीदेवी और गोपालसिंह के साथ दगा करने में भूतनाथ शरीक था और इस बात का डर केवल भूतनाथ और दारोगा ही को नहीं था बल्कि मायारानी को भी था और वह भी अपने को भूतनाथ और दारोगा के कब्जे में समझती थी। राजा गोपालसिंह को कैद करने के बाद यह डर और भी बढ़ गया होगा और भूतनाथ ने भी उसे कुछ डराया-धमकाया या रुपये वसूल करने के लिए तंग किया होगा और उस समय भूतनाथ को अपने आधीन करने के लिए मायारानी ने यह कार्रवाई की होगी अर्यात भूतनाथ को राजा वीरेन्द्रसिंह का दोषी ठहराने के लिए बहुत से सबूत इकट्ठे किये होंगे।

भैरोंसिंह-मैं भी यही सोचता हूँ।

तेजसिंह-निःसन्देह ऐसा ही है।

कमलिनी-ओफ ओह! अगर मैं पहले ही ऐसा जान गई होती तो भूतनाथ का इतना पक्ष न करती और न उसे अपना साथी ही बनाती।

देवीसिंह-मगर इधर तो उसने आपके कामों में बड़ी मेहनत की है इसलिए मुरौवत तो करनी पड़ेगी!

कमलिनी-नहीं-नहीं, मैं उसका कसुर कभी माफ नहीं कर सकती चाहे जो हो!

देवीसिंह-मगर फिर वह भी आप ही लोगों का दुश्मन हो जायगा। जहाँ तक मैं समझता हूँ इस समय वह अपने किए पर आप पछता रहा है।

कमलिनी-जो हो मगर यह कसूर ऐसा नहीं है जिसे मैं माफ कर सकूं। ओह, क्रोध के मारे मेरा अजब हाल हो रहा है !

तेजसिंह-उसने कसूर भी भारी किया है।

बलभद्रसिंह-अभी क्या है, अभी तो कुछ देखा ही नहीं! उसने जो किया है उसका हजारवाँ भाग भी अभी तक आपको मालूम नहीं हुआ है! जरा आगे की चिट्ठियां तो पढ़िए, और इसके बाद जब वह पीतल वाला कमलदान खुलेगा तब हम देवीसिंहजी से पूछेगे कि 'कहिए, भूतनाथ के साथ कैसा सलूक करना चाहिए?

इस समय बेचारी तारा (जिसको आगे से हम लक्ष्मीदेवी के नाम से लिखा करेंगे) चुपचाप बैठी लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी। बाप की शर्म से वह इस विषय में कुछ बोल नहीं सकती थी मगर भूतनाथ से बदला लेने का खयाल उसके दिल में मजबूती के साथ जड़ पकड़ता जा रहा था और क्रोध की आँच उसके अन्दर इतनी ज्यादा तेज होकर सुलग रही थी कि उसका तमाम बदन गर्म हो रहा था इस तरह जैसे बुखार चढ़ आया हो। आज के पहले तक वह भूतनाथ को लायक और नेक समझती थी, मगर इस