पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३२

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शेरअलीखाँ ने सिर हिला दिया, मानो स्वीकार किया।

जिन्न—दूसरी बात मैं अपने सवालों के अन्त में कहूंगा।

शेरअलीखाँ-बहुत अच्छा, इन्हें भी पूछ डालिये।

जिन्न--आपने इस कम्बख्त 'मुन्दर' का साथ क्यों दिया, जिसने अपने को मायारानी के नाम से मशहूर कर रखा है?

'मुन्दर' के शब्द में जादू का असर था जिसने मायारानी और दारोगा के कलेजे को दहला दिया। यह एक ऐसी गुप्त और भेद की बात थी जिसके सुनने के लिए दोनों तैयार न थे और न यहाँ सुनने की उन दोनों की आशा ही थी।

शेरअलीखाँ–(ताज्जुब से) मुन्दर!

जिन्न-हाँ मुन्दर, आप यह न समझिये कि यह आपके दोस्त बलभद्रसिंह की लड़की है।

शेरअलीखाँ–तो क्या यह हमारे दोस्त के दुश्मन हेलासिंह की लड़की मुन्दर है?

जिन्न--जी हाँ।

शेरअलीखां--(जोश के साथ)बस आप मेहरबानी करके मुझे छोड़ दीजिए। अगर आप बहादुर हैं और आपको बहादुरी का दावा है तो मुझे छोड़िये, मैं कसम खाकर कहता हूँ कि अगर आपकी यह बात सच निकली तो आपकी गुलामी अपनी इज्जत का सबब समझूंगा।"

जिन्न तुरन्त उसकी छाती पर से उठकर अलग खड़ा हो गया और मायारानी तथा दारोगा की सुरत गौर से देखने लगा, जिनके चेहरे का रंग गिरगिट की तरह बदल रहा था।

शेरअलीखाँ उठकर खड़ा हो गया और गुस्से-भरी आँखों से मायारानी की तरफ देखकर बोला, "इस बहादुर ने (जिन्न की तरफ इशारा करके) जो कुछ कहा, क्या वह ठीक है?"

मायारानी-झूठ, बिल्कुल झूठ!

जिन्न–शायद मुन्दर को इस बात की खबर नहीं कि असली मायारानी अर्थात् लक्ष्मीदेवी का बाप प्रकट हो गया है और वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों के सामने ही वह अपनी लड़की लक्ष्मीदेवी से मिला जो तारा के नाम से कमलिनी के मकान में इस तरह रहती थी कि कमलिनी को भी अब तक उसका हाल मालूम न होने पाया था और इस समय बलभद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी इस रोहतासगढ़ किले के अन्दर मौजद भी हैं। (शेरअलीखाँ से) मैं समझता हूँ कि तुम उनसे मिलना खुशी से पसन्द करोगे और मुलाकात होने पर सच-झूठ का शक भी न रहेगा, अच्छा, अब मैं जाता हूँ। तुम जो मुनासिब समझो, करो।

शेरअलीखाँ-सुनिये, वह दूसरी बात तो आपने कही ही नहीं।

जिन्न-अब इस समय उसके कहने की कोई जरूरत नहीं मालूम पड़ती है, फिर देखा जायेगा!

इतना कह जिन्न तो वहाँ से रवाना हो गया और इन सभी को परेशानी की हालत में छोड़ गया। मायारानी और दारोगा की इस समय अजब हालत थी। मौत की भयानक