पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२४१

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भूतनाथ―अगर महाराज को इस बात का रंज है तो महाराज निश्चय रखें कि भूतनाथ महाराज की नजरों से दूर किए जाने लायक साबित नहीं होगा। (इधर-उधर और पीछे की तरफ देख के) मगर अफसोस, हमारा मददगार अभी तक नहीं पहुँचा, न मालूम कहाँ अटक रहा!

इतने में सामने की तरफ से वही जिन्न आता हुआ दिखाई पड़ा, जिसे तेजसिंह पहले देख चुके थे और जिसका हाल राजा वीरेन्द्रसिंह से भी कह चुके थे। इस जिन्न की चाल आजाद, बेफिक्र और निडर लोगों की-सी थी जो धीरे-धीरे चलकर उसी दालान में आ पहुँचा और चुपचाप एक किनारे खड़ा हो गया।

उसके रंग-ढंग और उसकी पोशाक का हाल हम एक जगह बयान कर आए हैं, इसलिए पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। यद्यपि जिन्न आश्चर्यजनक रीति से यकायक वहाँ आ पहुँचा था और उसको इस बात का गुमान था कि हमारा आना लोगों को बड़ा ही आश्चर्यजनक मालूम होगा, मगर ऐसा न था क्योंकि तेजसिंह को इस बात की खबर पहले ही दिन हो चुकी थी जब वे जिन्न और भूतनाथ के पीछे-पीछे जाकर उनकी बातें सुन आये थे और तेजसिंह ने यह हाल राजा वीरेन्द्रसिंह, अपने साथियों और कमलिनी, लक्ष्मीदेवी वगैरह से भी कह दिया था, अतएव जिन्न के आने का सब कोई इन्तजार ही कर रहे थे और जब वह आ गया, तो सब उसकी सूरत गौर से देखने लगे। वीरेन्द्रसिंह का इशारा पाकर देवीसिंह ने उस जिन्न से पूछा―

देवीसिंह―महाराज की इच्छा है कि तुम अपना नाम और यहाँ आने का सबब बताओ।

जिन्न―मेरा नाम कृष्ण जिन्न है और मैं भूतनाथ का विचित्र मुकदमा सुनने तथा अपने एक पुराने मित्र से मिलने आया हूँ।

देवीसिंह―(आश्चर्य से) क्या भूतनाथ के अतिरिक्त कोई दूसरा आदमी भी तुम्हारा मित्र है?

जिन्न―हाँ।

देवीसिंह―और वह है कहाँ?

जिन्न―इसी जगह, आप लोगों के बीच ही में।

देवीसिंह―अगर ऐसा है तो तुम उसे अपने पास बुलाओ और बातचीत करो।

जिन्न—इससे आपको कोई मतलब नहीं, जब मौका आवेगा ऐसा किया जाएगा।

देवीसिंह―ताज्जुब है कि तुम किसी का कुछ खयाल न करके बेअदबी के साथ बातचीत करते हो! क्या हम लोगों के साथ तुम्हें किसी तरह की दुश्मनी या रंज है? या दुश्मनी पैदा करना चाहते हो?

जिन्न―दुश्मनी बिना डाह, डर और रंज के पैदा नहीं होती और हमारे को ये तीनों बात छू नहीं गई हैं। न तो हमें किसी का डर है न किसी को डराने की इच्छा है, न किसी को कुछ देते हैं और न किसी से कुछ चाहते हैं, न कोई हमारा कुछ बिगाड़ सकता है न हम किसी का कुछ बिगाड़ते हैं, न हमें किसी बात की कमी है न लालसा है, फिर ऐसी अवस्था में किसी से दुश्मनी या रंज की नौबत हो भी क्योंकर सकती है? अतः