पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२४४

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कमलिनी और लाड़िली के वाप बनकर अपने को बराबरी का दर्जा दिया चाहते हो, मगर ऐसा नहीं हो सकता। अगर भूतनाथ दोषी है तो तुम भी मुँँह दिखाने के लायक नहीं हो। समझ रखो और खूब समझ रखो कि चाहे आज ही या दो दिन के बाद हो, भूतनाथ की इज्जत तुमसे बढ़ी ही रहेगी! (भूतनाथ की तरफ़ देखकर) क्यों जी भूतनाथ, तुम क्यों इससे दबे जाते हो? तुम्हें किस बात का डर है?

भूतनाथ―(पीतल की सन्दूकड़ी की तरफ इशारा करके) वस केवल इसी का डर है, और इस कागज के मुढे को तो मैं कुछ भी नहीं समझता, इसकी इज्जत तो मेरे सामने इतनी ही हो सकती है जितनी आज के दिन मायारानी की उस चिट्ठी की होती जो वह अपने हाथ से लिख कर राजा गोपालसिंह के सामने इस नीयत से रखती कि उसका कसूर माफ किया जाये और लक्ष्मीदेवी का कुछ खयाल न करके मुझे पुनः रानी बनाया जाये।

जिन्न—निःसन्देह ऐसा ही है और इसी सन्दूकड़ी के सबब से बलभद्रसिंह तुम्हारे सामने ढिठाई कर रहा है। अच्छा इस सन्दूकड़ी का जादू दूर करने के लिए इसी के पास नैं एक तिलिस्मी कलमदान रखे देता हूँ, जिसमें बलभद्रसिंह पुनः तुम्हारे सामने बोलने का साहस न कर सके और तुम्हारा मुकदमा विना किसी रोक-टोक के समाप्त हो जाये।

इतना कह कर जिन्न ने अपने कपड़ों के अन्दर से एक सोने का कलमदान निकाल कर उस सन्दूकड़ी के बगल में रख दिया जो राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने रक्खी हुई थी और भूतनाथ के कागजात की गठरी में से निकाली गई थी।

यह कलमदान, जिसका ताला बन्द था, बहुत ही अनूठा और सुन्दर बना हुआ था। इसके ऊपर की तरफ मीनाकारी के काम की तीन तस्वीरें बनी हुई थीं और उनकी चमक इतनी तेज और साफ थी कि कोई देखने वाला इन्हें पुरानी नहीं कह सकता था।

इस कलमदान को देखते ही भूतनाथ खुशी से उछल पड़ा और जिन्न की तरफ देख के तथा हाथ जोड़ के बोला, “माफ करना, मैंने आपकी कुदरत के बारे में शक किया था। मैं नहीं जानता था कि आपके पास एक ऐसी अनूठी चीज है। यद्यपि मैंने अभी तक आपको नहीं पहचाना, तथापि कह सकता हूँ कि आप साधारण मनुष्य नहीं हैं। आप यह न समझें कि यह कलमदान मुझसे दूर है और मैं इसे अच्छी तरह से देख नहीं सकता। नहीं-नहीं, ऐसा नहीं है, इसकी एक झलक ने ही मेरे दिल के अन्दर इसकी पूरी-पूरी तस्वीर खींच दी है! (आसमान की तरफ हाथ उठा के) हे ईश्वर, तू धन्य है!”

भूतनाथ के विपरीत बलभद्रसिंह पर उस कलमदान का उल्टा ही असर पड़ा। वह उसे देखते ही चिल्ला उठा और उठकर मैदान की तरफ भामा मगर जिन्न ने फुर्ती के साथ लपक कर उसे पकड़ लिया और वीरेन्द्रसिंह के सामने लाकर कहा, “भलमनसी के साथ हाँ चुपचाप बैठो, तुम भाग कर अपनी जान किसी तरह नहीं बचा सकते!”

केवल भूतनाथ और बलभद्र सिंह पर ही नहीं बल्कि तिलिस्म के दारोगा पर भी उस कलमदान का बहुत ही बुरा असर पड़ा और डर के मारे वह इस तरह काँपने लगा जैसे जड़ैया बुखार चढ़ आया हो। वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और बाकी के ऐयारों को भी बड़ा ही आश्चर्य हुआ और वे लोग ताज्जुब-भरी निगाहों से उस कलमदान की तरफ देखने लगे। इतने में चिक के अन्दर से आवाज आई, “इस कलमदान को मैं भी जरा देखना