पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२७

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थे। इसके बाद फिर पांच सिपाही कोठरी के अन्दर घुसे और इनकी भी वही अवस्था हुई, यहाँ तक कि जितने सिपाही वहाँ मौजूद थे पाँच-पाँच करके सभी कोठरी के अन्दर से हो आए और सब ही की वही अवस्था हुई जैसी पहले गये हुए पाँचों सिपाहियों की हुई थी। धनपत ताज्जुब-भरी निगाहों से यह तमाशा देख और असल भेद जानने के लिए बेचैन हो रहा था मगर इतनी हिम्मत न पड़ती थी कि किसी से कुछ पूछता, क्योंकि नकाबपोशों की आज्ञानुसार सिपाहियों की तरह वह उस कोठरी के अन्दर जाने नहीं पाया था जिसमें दोनों नकाबपोश थे। अन्त में सब सिपाहियों ने आपस में बातें करके इशारे में इस बात का निश्चय कर लिया कि कोठरी के अन्दर उन सभी ने एक ही रंगढंग का तमाशा देखा था।

थोड़ी देर बाद दोनों नकाबपोश उस कोठरी के बाहर निकल आए और उनमें से नाटे नकाबपोश ने सिपाहियों की तरफ देख कर कहा, "धनपत को मेरे हवाले करो।" सिपाहियों ने कुछ भी उज्र न किया बल्कि बहुत अदब के साथ आगे बढ़कर धनपत को नकाबपोश के हवाले कर दिया। दोनों नकाबपोश उसे साथ लिये हुए फिर उस कोठरी के अन्दर घुस गये और आधे घंटे तक वहाँ रहे, इसके बाद जब कोठरी के बाहर निकले तो नाटे नकाबपोश ने सिपाहियों से कहा, "धनपत को हमने ठिकाने पहुंचा दिया है, अब आओ, तुम लोगों को भी इस बाग के बाहर कर दें।" सिपाहियों ने कुछ भी उज्र न किया और दो-तीन झुण्डों में होकर नकाबपोश के साथ-साथ उस कोठरी के अन्दर गए और गायब हो गए। दोनों नकाबपोश भी उसी कोठरी के अन्दर जाकर गायब हो गये और उस कोठरी का दरवाजा भीतर से बन्द हो गया।

इस पचड़े में दो पहर दिन चढ़ आया, लीला दूर से खड़ी यह तमाशा देख रही थी, जब सन्नाटा हो गया तो वह भी लौटी और उसने इन बातों की खबर मायारानी तक पहुंचाई।


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लीला की जुबानी दोनों नकाबपोशों, सिपाहियों और धनपत का हाल मनकर मायारानी बहुत ही उदास और परेशान हो गई। वह आशा जो तिलिस्मी दरवाजा बन्द करने और बेहोशी का अद्भुत धूरा छिड़ककर पर उसे बंधी थी, बिल्कूल जाती थी। तिलिस्म में जाकर तिलिस्मी दरवाजे को बन्द करना, तिलिस्मी दवा पीना और लीला को पिलाना, बेहोशी की बुकनी फूलों के गमलों में डालना-सब बिल्कुल ही व्यर्थ हो गया। धनपत दोनों नकाबपोशों के कब्जे में पड़ गया और सब सिपाही भी सहज ही में बाग के बाहर हो गये। इस समय उन दोनों नकाबपोशों की कार्रवाइयों ने से ना बदहवास कर दिया कि वह अपने बचाव की कोई अच्छी सूरत सोच नहीं सकती थी। आखिर वह हर तरह से दुःखी होकर फिर उसी तहखाने के अन्दर गई जिसमें पहली