पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७५

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खंजर और ऐसी ही अँगूठी होगी।

नागर-बेशक यही बात है। खैर, अब यह बहुत जल्द सोचना चाहिए कि हम लोगों की जान कैसे बच सकती है।

मायारानी इसका कुछ जवाब दिया ही चाहती थी कि सामने का दरवाजा खुला और मायारानी के दारोगा साहब अन्दर आते हुए दिखाई पड़े। उन्हें देखते ही मायारानी क्रोध के मारे लाल हो गई और कड़क कर बोली, "तुझ कम्बख्त को यहाँ किसने आने दिया! खैर, अच्छा ही हुआ जो तू आ गया। मुझे मालूम हो गया कि तेरी मौत तुझे यहाँ पर लाई है, हाँ अगर तेरी चिट्ठी मुझे न मिली रहती तो मैं फिर धोखे में आ जाती। कम्बख्त, नालायक, तूने मुझे बड़ा भारी धोखा दिया! अब तू मेरे हाथ से बच कर नहीं जा सकता!"

दारोगा-तू अपने होश में भी है या नहीं? क्या अपने को बिल्कुल भूल गई! क्या तू नहीं जानती कि किससे क्या कह रही है? मेरी मौत नहीं बल्कि तेरी मौत आई है जो तू जुबान सम्हाल कर नहीं बोलती।

मायारानी-(खड़ी होकर और तिलिस्मी खंजर को हाथ में लेकर) हाँ, ठीक है, यदि मैं अपने होश में रहती तो तुझ कम्बख्त के फेर में पड़ती ही क्यों? बेईमान कहीं का, तूने मुझे बड़ा भारी धोखा दिया, देख अब मैं तेरी क्या दुर्गति करती हूँ।

नागर-ताज्जुब है कि इतनी बड़ी बदमाशी करने पर भी तू निडर होकर यहाँ कैसे चला आया! मालूम होता है अपनी जान से हाथ धो बैठा। कोई हर्ज नहीं, अगर तिलिस्मी खंजर का असर तुझ पर नहीं होता, तो मैं दूसरी तरह से तेरी खबर लूँगी।

इस समय मायारानी की फुर्ती देखने ही योग्य थी। वह बाघिन की तरह झपट कर दारोगा के पास पहुँची। इस समय उसकी उंगली में एक जहरीली अंगूठी उसी तरह की थी जैसी नागर के हाथ में उस समय थी जब उसने सुनसान जंगल में भूतनाथ को अँगूठी गाल में रगड़ कर बेहोश किया था। इस समय मायारानी ने भी वही काम किया, अर्थात् वह अंगूठी जिस पर जहरीला नोकदार नगीना जड़ा हुआ था, दारोगा के गाल में इस फुर्ती और चालाकी से रगड़ दी कि वह बेचारा कुछ भी न कर सका। उस नगीने की रगड़ से गाल जरा-सा ही छिला था मगर जहर का असर पल भर में अपना काम कर गया। दारोगा चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। मायारानी ने नागर की तरफ देखा और कहा, "अब इसके हाथ-पैर जकड़ के बाँध दो और तब होश में लाकर पूछो कि 'कहिए तेजसिंह, अब आपका मिजाज कैसा है?' इसके जवाब में नागर ने कहा-'केवल हाथ-पैर ही बाँध कर के नहीं छोड़ दो, बल्कि थोड़ीनाक काट लो और नकली दाढ़ी उखाड़ कर फेंक दो और तब होश में लाकर पूछो कि 'कहिए ऐयारों के गुरू-घंटाल तेजसिंह, आपका मिजाज कसा है?"

इस समय मायारानी यही समझ रही थी कि यह दारोंगा वास्तव में वही तेजसिंह है जिसने उसे अँगूठी रीति से धोखा दिया था, बल्कि वह उसके शक पर बगीचे में घूमने के समय हर एक पत्ते से डरती फिरे तो ताज्जुब नहीं। परन्तु हमारे पाठक जरूर समझते होंगे कि तेजसिंह ऐसे बेवकूफ नहीं हैं जो मायारानी को धोखा देकर