पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८४

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भैरोंसिंह-मैं तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा रहा था, मगर जब दारोगा वाले बँगले के पास पहुँचा तो उसकी बिगड़ी हुई अवस्था देखकर जी व्याकुल हो गया, क्योंकि इस बात का विश्वास करने में किसी तरह का शक नहीं हो सकता था कि उस बँगले की बरबादी का सबब बारूद और सुरंग है और यह कार्रवाई बेशक हमारे दुश्मनों की है। अस्तु, तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाने के पहले इस मामले का असल हाल जानने की इच्छा हुई और किसी से मिलने की आशा में मैं इस जंगल में घूमने लगा। मगर इस लालटेन की रोशनी ने, जो यहाँ बल रही है, मुझे ज्यादा देर तक नहीं भटकने दिया। अब सबसे पहले मैं उस बँगले की बरबादी का सबब जानना चाहता हूँ। यदि आपको मालूम हो तो कहिये।

तेजसिंह-मैं भी यही चाहता हूँ कि राजा वीरेन्द्रसिंह का कुशल-क्षेम पूछने के बाद जो कुछ कहना है, सो तुमसे कहूँ और उस बँगले की कायापलट का सबब तुमसे बयान करूँ, क्योंकि इस समय एक बड़ा ही कठिन काम तुम्हारे सुपुर्द किया जायेगा जो कितना जरूरी है सो उस बँगले का हाल सुनते ही तुम्हें मालूम हो जायगा।

भैरोंसिंह-राजा वीरेन्द्रसिंह बहुत अच्छी तरह हैं। इधर का हाल सुनकर उन्हें बहत क्रोध आता है और चुपचाप बैठे रहने की इच्छा नहीं होती, परन्तु आपकी वह बात उन्हें बराबर याद आती रहती है जो उनसे बिदा होने के समय अपनी कसम का बोझ देकर आप कह आये थे। निःसन्देह वे आपको सच्चे दिल से चाहते हैं और यही सबब है कि बहुत कुछ कर सकने की शक्ति रखकर भी कुछ नहीं कर रहे हैं।

तेजसिंह-हाँ, मैं उनसे यह ताकीद कर आया था कि चुपचाप चुनार जाकर बैठिए और देखिए कि हम लोग क्या करते हैं। तो क्या राजा वीरेन्द्रसिंह चुनार गये?

भैरोंसिंह-जी हाँ, वे चुनार गये और मैं अबकी दफे चुनार ही से चला आ रहा हूँ। रोहतासगढ़ में केवल ज्योतिषीजी हैं और उन्हें राज्य-सम्बन्धी कार्यों से बहुत कम फरसत मिलती है। इसी सबब से दारोगा धोखा देकर न मालूम किस तरह कैद से निकल भागा। जब यह खबर चुनार पहुँची तो यह सोचकर, कि भविष्य में कोई गड़बड न होने पाये, चन्नीलाल ऐयार रोहतासगढ़ भेजे गये और जब तक कोई दूसरा हक्म न पहँचे, उन्हें बराबर रोहतासगढ़ ही में रहने की आज्ञा हई और मैं इधर का हालचाल लेने के लिए भेजा गया।

तेजसिंह-अच्छा, तो मैं दारोगा वाले बँगले की बरबादी का सबब बयान करता हूँ।

इसके बाद तेजसिंह ने सब हाल अर्थात् अपना सुरंग मे जाना, मायारानी से मलाकात और बातचीत, राजा गोपालसिंह और कमलिनी इत्यादि का गिरफ्तार होना और फिर उन्हें छुड़ाना, तथा दारोगा वाले बंगले के उड़ने का सबब और इसके बाद का पूरा-पूरा हाल कह सुनाया जिसे भैरोंसिंह बड़े गौर से सुनता रहा और जब बातें पूरी हो गयी तो बोला

भैरोंसिंह-यह एक विचित्र बात मालूम हुई कि मायारानी वास्तव में कमलिनी की बहिन नहीं है। (कुछ सोचकर) मगर मैं समझता हूँ कि असल बातों का पूरा-पूरा