पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१०७

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और कमला के क्रिया-कर्म का बखेड़ा (जिसका करना लोगों को धोखे में डालने के लिए आवश्यक था) चुनार में ले आना उन्होंने पसन्द न किया बल्कि रास्ते में निपटा डालना उचित जाना, इसलिए पन्द्रह-बीस दिन की देर उन्हें रास्ते में हो गई और इसी से वहाँ पहुँच जाने पर भूतनाथ ने सुना कि राजा वीरेन्द्रसिंह कल आने वाले हैं।

उस खँडहर में पहुँचने पर रात के समय भूतनाथ ने जो कुछ तमाशा देखा था उसका विचित्र हाल तो हम ऊपर के किसी बयान में लिख ही चुके हैं, आज उसी के आगे का हाल लिखकर हम अपने पाठकों के चित्त में भूतनाथ की तरफ से पुनः एक तरह का खुटका पैदा करना चाहते हैं।

बलभद्रसिंह ने जब अपने सिरहाने वाला लिफाफा उठाकर शमादान के सामने खोला तो उसके अन्दर से एक अँगूठी निकली जिसे देखते ही वह चिल्ला उठा और तब बिना कुछ कहे अपनी चारपाई पर आकर बैठ गया। भूतनाथ ने उससे पूछा, "क्यों, यह अँगूठी कैसी है और इसे देखकर तुम घबरा क्यों गये?"

बलभद्रसिंह––इस अँगूठी ने मुझे कई ऐसी बातें याद दिला दीं जिन्हें स्वप्न की तरह कभी याद करके मैं चौंक पड़ता था, मगर आज नहीं, फिर कभी मैं इसका खुलासा हाल तुमसे कहूँगा।

भूतनाथ––भला देखो तो सही उस लिकाफे के अन्दर कोई चिट्ठी भी है या केवल अँगूठी।

बलभद्रसिंह––(लिफाफा भूतनाथ के हाथ में देकर) लो, तुम्हीं देखो।

भूतनाथ––(शमादान के पास लिफाफा ले जाकर और उसे अच्छी तरह देखकर) हाँ-हाँ, इसमें चिट्ठी भी तो है।

बलभद्रसिंह––(भूतनाथ के पास जाकर) देखें।

भूतनाथ ने वह चिट्ठी बलभद्रसिंह के हाथ में दी और बलभद्रसिंह ने बड़े शौक से उसे पढ़ा, यह लिखा हुआ था––

"यह अँगूठी देकर तुम्हें विश्वास दिलाते हैं कि तुम हमारे हो और हम तुम्हारे हैं। भूतनाथ को अपना सच्चा सहायक समझो और जो कुछ वह कहे, उसे करो। भूतनाथ यह नहीं जानता कि हम कौन हैं, मगर हम कल उससे मिलकर अपना परिचय देंगे और जो कुछ कहना होगा, कहेंगे।"

इस चिट्ठी को पढ़कर दोनों के जी में एक तरह का खुटका पैदा हो गया और बिना कुछ विशेष बातचीत किये दोनों अपनी-अपनी चारपाई पर जाकर लेट रहे, मगर बची हुई रात दोनों ने अपनी आंखों में ही काटी, किसी को नींद न आई।

दूसरे दिन सवेरे ही पन्नालाल उन दोनों के पास पहुँचे और रात भर का कुशल-मंगल पूछा। दोनों ही ने दुनियादारी के तौर पर कुशल-मंगल कहकर बातचीत की मगर रात के विचित्र हाल को अपने दिल के अन्दर ही छिपा रखा।

दिनभर इन दोनों का बड़े चैन और आराम से बीता। जीतसिंह से भी मुलाकात और कई तरह की बातें हुई, मगर जीतसिंह और उनकी आज्ञानुसार किसी ऐयार ने भी उन दोनों से मुकदमे की बात या किसी तरह का सवाल न किया क्योंकि यह बात पहले