पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१३२

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आप मेरे मेहमान बनिए और यहाँ से उठिये।

इन्द्रजीतसिंह––क्या तुम नहीं जानतीं कि यहाँ अपने भी पराए होकर दुःख देने के लिए तैयार हो जाते हैं?

भैरोंसिंह––(कमलिनी से) आपने खयाल किया या नहीं? यह मेरी पूजा हो रही है।

कमलिनी––होनी ही चाहिए, आप इसी के योग्य हैं। (इन्द्रजीतसिंह से) मगर आप मुझ लौंडी पर किसी तरह का शक न करें। यदि आप यह समझते हों कि मैं वास्तव में कमलिनी नहीं हूँ, तो मैं बहुत-सी बातें उस जमाने की आपको याद दिला कर अपने पर विश्वास करा सकती हूँ। जिस जमाने में आप तालाब वाले तिलिस्मी मकान में मेरे साथ रहते थे। (उस समय की दो-तीन गुप्त बातों का इशारा करके) कहिए, अब भी मुझ पर शक है?

इन्द्रजीतसिंह––(बनावटी मुस्कराहट के साथ) नहीं, अब तुम पर शक तो किसी तरह का नहीं है, मगर रंज जरूर है।

कमलिनी––रंज! सो किस बात का?"

इन्द्रजीतसिंह––इस बात का कि यहाँ आने पर तुमने मुझसे जान-बूझ के अपने को छिपाया और मुझे तरद्दुद में डाला!

कमलिनी––(हँसकर और कुमार का हाथ पकड़ के) अच्छा, आप यहाँ से उठिये और उस कमरे में चलिए तो मैं आपकी सब बातों का जवाब दूँगी। आप तो जरा-सी बात में रंज हो जाते हैं। मगर आपके साथ किसी तरह का मसखरापन किया या हम लोगों को आपसे मिलने नहीं दिया गया तो आपकी भावज साहेबा ने, अतः आपकी ऐसी बातों का जवाब भी वे ही देंगी और उनसे भी उसी कमरे में मुलाकात होगी।

इन्द्रजीतसिंह––मेरी भावज साहेबा! सो कौन, क्या लक्ष्मीदेवी?

कमलिनी––जी हाँ, वे उसी कमरे में बैठी आपका इन्तजार कर रही हैं, चलिए।

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, हैं तो उनसे मैं जरूर मिलूँगा। जबसे मैंने यह सुना है क तारा वास्तव में लक्ष्मीदेवी हैं तभी से मैं उनसे मिलने के लिए बेताब हो रहा हूँ।

यह कहकर इन्द्रजीतसिंह उठ खड़े हुए और अपने सूखे हुए कपड़े पहनकर कमलिनी के साथ उसी कमरे की तरफ चले जिसमें पहले भी कई दफे आराम कर चुके थे। उनके पीछे-पीछे आनन्दसिंह और भैरोंसिंह गए।

इस समय कमलिनी मामूली ढंग में न थी बल्कि बेशकीमत पोशाक और गहनों से अपने को सजाए हुए थी। एक तो यों ही किशोरी के मुकाबले की खूबसूरत और हसीन थी तिस पर इस समय की बनावट और शृंगार ने उसे और भी उभाड़ रखा था। यद्यपि आज उससे मिलने के पहले कुमार तरह-तरह की बातें सोच रहे थे और इन्द्रानी तथा आनन्दी वाले मामले से शर्मिन्दा होकर जल्दी उससे मिलना नहीं चाहते थे मगर जब सामने आकर खड़ी हो गई तो सब बातें एक तरह पर थोड़ी देर के लिए भूल गये और खुशी-खुशी उसके साथ चलकर उस कमरे में जा पहुँचे।

इस कमरे का दरवाजा मामूली ढंग पर बन्द था, जो कमलिनी के धक्का देने से

च॰ स॰-5-8