पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१७१

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वे लोग भी हर तरह से मेरी बातों को सुन रहे हैं जिन्होंने उस दिन इसे असली बलभद्रसिंह मान लिया और मुझे घृणा की दृष्टि से भी देखना पसन्द नहीं करते थे। आशा है आप लोग उस समय की भूल पर अफसोस करेंगे और इस समय मैं बड़े अनूठे रहस्यों को खोलकर जो तमाशा दिखाने वाला हूँ, उसे ध्यान देकर देखेंगे।

तेजसिंह––बेशक ऐसा ही है, औरों के दिल की तो मैं नहीं कह सकता, मगर मैं अपनी उस समय की भूल पर जरूर अफसोस करता हूँ।

इस कमरे में जिसमें दरबार लगा हुआ था, ऊपर की तरफ कई खिड़कियाँ थीं जिनमें दोहरी चिकें पड़ी हुई थीं जहाँ बैठी लक्ष्मीदेवी, कमलिनी वगैरह इन बातों को बड़े गौर से सुन रही थीं। भूतनाथ ने पुनः जैपाल की तरफ देखा और कहा––

भूतनाथ––अब मैं उन बातों को भी जान चुका हूँ जिन्हें उस समय न जानने के कराण मैं सचाई के साथ अपनी बेकसूरी साबित नहीं कर सकता था। हाँ कहो, अब तुम अपने बारे में क्या कहते हो?

जैपालसिंह––मालूम होता है कि आज तू अपने हाथ की लिखी हुई उन चिट्ठियों से इनकार किया चाहता है जो तेरी बुराइयों के खजाने को खोलने के काम में आ चुकी हैं और आवेंगी। क्या लक्ष्मीदेवी की गद्दी पर मायारानी को बैठाने की कार्रवाई में तूने सबसे बड़ा हिस्सा नहीं लिया था और क्या वे सब चिट्ठियाँ तेरे हाथ की लिखी हुई नहीं हैं?

भूतनाथ––नहीं-नहीं, मैं इस बात से इनकार नहीं करूँगा कि वे चिट्ठियाँ मेरे हाथ की लिखी हुई नहीं हैं, बल्कि इस बात को साबित करूँगा कि लक्ष्मीदेवी के बारे में मैं बिल्कुल बेकसूर हूँ और चिट्ठियाँ, जिन्हें मैंने अपने फायदे के लिए लिख रक्खा था मुझे नुकसान पहुँचाने का सबब हुईं, तथा इस बात को भी साबित करूँगा कि मैं वास्तव में वह रघुबरसिंह नहीं हूँ जिसने लक्ष्मीदेवी के बारे में कार्रवाई की थी। इसके साथ ही तुझे और इस नकटे दारोगा को भी यह सुनकर अपने उछलते हुए कलेजे को रोकने के लिए तैयार हो जाना चाहिए कि केवल असली बलभद्र सिंह ही नहीं, बल्कि इन्दिरा तथा सरयू भी दम भर में तुम लोगों की कलई खोलने के लिए यहाँ आ चुकी हैं!

जैपाल––(बेहयाई के साथ) मालूम होता है कि तुम लोगों ने किसी को जाली बलभद्रसिंह बनाकर राजा साहब के सामने पेश कर दिया है।

इतना सुनते ही बलभद्र सिंह ने अपने चेहरे से नकाब हटाकर जैपाल की तरफ देखा और कहा, "नहीं-नहीं, जाली बलभद्रसिंह नहीं बनाया गया बल्कि मैं स्वयं असली बलभसिंह यहाँ बैठा हुआ तेरी बातें सुन रहा हूँ।"

बलभद्रसिंह की सूरत देखकर एक दफे तो जयपाल हिचका। मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाला और परले सिरे की बेहयाई को काम में लाकर कहा, "आहा, हेलासिंह भी यहाँ आ गए! मुझे तुमसे मिलने की कुछ भी आशा न थी, क्योंकि मेरे मुलाकातियों ने जोर देकर कहा था कि हेलासिंह मर गया और अब तुम उसे कदापि नहीं देख सकते।"

बलभद्रसिंह––(मुस्कराता हुआ तेजसिंह की तरफ देख कर) ऐसे बेहया की सूरत