पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
185
 

हुई तरह-तरह की तस्वीरें अपनी खूबी और खूबसूरती के सबब देखने वालों का दिल खींच लेती थीं, परन्तु इस समय उन पर भरपूर और बारीक निगाह डालना हमारे ऐयारों के लिए कठिन था इसलिए हम भी उनका हाल बयान नहीं कर सकते।

जो लोग दोनों ऐयारों को गिरफ्तार कर लाये थे, बनमें से एक आदमी पर्दा उठा कर बँगले के अन्दर चला गया और चौथाई घड़ी के बाद लौट आकर अपने साथियों से बोला, "इन दोनों महाशयों को सरदार के सामने ले चलो और एक आदमी जाकर इनके लिए हथकड़ी-बेड़ी भी ले आओ, कदाचित हमारे सरदार इन दोनों के लिए कैदखाने का हुक्म दें।"

अतः एक आदमी हथकड़ी-बेड़ी लाने के लिए चला गया और वे सब देवीसिंह और भूतनाथ को लिए हुए बंगले की तरफ रवाना हुए।

यह बँगला बाहर से जैसा सादा और मामूली ढंग का मालूम होता था, वैसा अन्दर से नहीं था। जूता उतार कर चौखट के अन्दर पैर रखते ही हमारे दोनों ऐयार ताज्जुब के साथ चारों तरफ देखने लगे और फौरन ही समझ गये कि इसके अन्दर रहने वाला या इसका मालिक कोई साधारण आदमी नहीं है। देवीसिंह के लिए यह बात सबसे ज्यादा ताज्जुब की थी और इसीलिए उनके दिल में घड़ी-घड़ी यह बात पैदा होती थी कि यह स्थान हमारे इलाके में होने पर भी अफसोस और ताज्जुब की बात है कि इतने दिनों तक हम लोगों को इसका पता न लगा।

पर्दा उठा कर अन्दर जाने पर हमारे दोनों ऐयारों ने अपने को एक गोल कमरे में पाया जिसकी छत भी गोल और गुम्बददार थी और उसमें बहुत-सी बिल्लौरी हाँडियाँ, जिनमें इस समय मोमबत्तियाँ जल रही थीं, कायदे और मौके के साथ लटक रही थीं। दीवारों पर खूबसूरत जंगलों और पहाड़ों की तस्वीरें निहायत खूबी के साथ बनी थीं जो इस जगह की ज्यादा रोशनी के सबब साफ मालूम होती थीं और यही जान पड़ता था कि अभी ताजा बनकर तैयार हुई हैं। इन तस्वीरों में अकस्मात् देवीसिंह और भूतनाथ ने रोहतासगढ़ के पहाड़ और किले की भी तस्वीर देखी जिसके सबब से और तस्वीरों को भी गौर से देखने का शौक इन्हें हुआ मगर ठहरने की मोहलत न मिलने के सबब से लाचार थे। वहाँ की जमीन पर सुर्ख मखमली मुलायम गद्दा बिछा हुआ था और सदर दरवाजे के अतिरिक्त और भी तीन दरवाजे नजर आ रहे थे, जिन पर बेशकीमत किमखाब के पर्दे पड़े हुए थे और उनमें मोतियों की झालरें लटक रही थीं। हमारे दोनों ऐयारों को दाहिने तरफ वाले दरवाजे के अन्दर जाना पड़ा जहाँ गली के ढंग पर रास्ता घूमा हुआ था। इस रास्ते में भी मखमली गद्दा बिछा हुआ था। दोनों तरफ की दीवारें साफ और चिकनी थीं तथा छत के सहारे एक बिल्लौरी कन्दील लटक रही थी जिसकी रोशनी इस सात-आठ हाथ लम्बी गली के लिए काफी थी। इस गली को पार करके ये दोनों एक बहुत बड़े कमरे में पहुँचाए गए जिसकी सजावट और खूबी ने उन्हें ताज्जुब में डाल दिया और वे हैरत की निगाह से चारों तरफ देखने लगे।

जंगल, मैदान, पहाड़, खोह, दरे, झरने, शिकारगाह तथा शहरपनाह, किले, मोरचे आदि और लड़ाई इत्यादि की तस्वीरें चारों तरफ दीवार में इस खूबी और सफाई