पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८७

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अतः जब नकाबपोश अपनी बात पूरी कर चुका तो इसके पहले कि उसका नौकर कुछ जवाब दे, भूतनाथ बोल उठा––

भूतनाथ––कृपानिधान, हम लोग यहाँ किसी बुरी नीयत से नहीं आये हैं, न तो चोरी करने का इरादा है न किसी को तकलीफ देने का, मैं केवल अपनी स्त्री का पता लगाने के लिए यहाँ आया हूँ, क्योंकि मेरे जासूसों ने मेरी स्त्री के यहाँ होने की मुझे इत्तिला दी थी।

नकाबपोश––(मुस्कुरा कर) शायद ऐसा ही हो, मगर मेरा खयाल कुछ दूसरा ही है। मेरा दिल कह रहा है कि तुम लोग उन दोनों नकाबपोशों का असल हाल जानने के लिए यहाँ आये हो जो राजा साहब के दरबार में जाकर अपने विचित्र कामों से लोगों को ताज्जुब में डाल रहे हैं, मगर साथ ही इसके इस बात को भी समझ लो कि यह मकान उन दोनों नकाबपोशों का नहीं है बल्कि हमारा है। उनके मकान में जाने का रास्ता तुम उस सुरंग के अन्दर ही छोड़ आये जिसे तै करके यहाँ आये हो, अर्थात् हमारे और उनके मकान का रास्ता बाहर से तो एक ही है मगर सुरंग के अन्दर आकर दो हो गया है। खैर, जो कुछ हो हम इस वारे में ज्यादा बातचीत करना उचित नहीं समझते और न तुम लोगों को कुछ तकलीफ ही देना चाहते हैं बल्कि अपना मेहमान समझ कर कहते हैं कि अब आ गये हो तो रात भर कुटिया में आराम करो; सवेरा होने पर जहाँ इच्छा हो चले जाना। (गद्दी के नीचे बैठे हुए एक नकाबपोश की तरफ देख के) यह काम तुम्हारे सुपुर्द किया जाता है, इन्हें खिला-पिलाकर ऊपर वाली मंजिल में सोने की जगह दो और सुबह को इन्हें खोह के बाहर पहुँचा दो।

इतना कहकर वह नकाबपोश उठ खड़ा हुआ और उसका साथी दूसरा नकाबपोश भी जाने के लिए तैयार हो गया। जिस जगह इन नकाबपोशों की गद्दी लगी हुई थी उस (गद्दी) के पीछे दीवार में एक दरवाजा था जिस पर पर्दा लटक रहा था। दोनों नकाबपोश पर्दा उठा कर अन्दर चले गये और यह छोटा-सा दरबार बर्खास्त हुआ। गद्दी के नीचे बैठने वाले मुसाहिब, दरबारी या नौकर जो भी कोई हों उठ खड़े हुए और उस आदमी ने जिसे दोनों ऐयारों की मेहमानी का हुक्म हुआ था देवीसिंह और भूतनाथ की तरफ देख कर कहा––"आप लोग मेहरबानी करके मेरे साथ आइये और ऊपर की मंजिल में चलिए।" भूतनाथ और देवीसिंह भी कुछ उज्र न करके पीछे-पीछे चलने के लिए तैयार हो गये।

नकाबपोश की बातों ने भूतनाथ और देवीसिंह दोनों ही को ताज्जुब में डाल दिया। भूतनाथ ने नकाबपोश से कहा था कि मैं अपनी स्त्री की खोज में यहाँ आया हूँ, मगर बहुत-कुछ कह जाने पर भी नकाबपोश ने भूतनाथ की इस बात का कोई जवाब न दिया और ऐसा करना भूतनाथ के दिल में खुटका पैदा करने के लिए कम नहीं था। भूतनाथ को निश्चय हो गया कि उसकी स्त्री यहाँ है और अवश्य है। उसने सोचा कि जो नकाबपोश राजा वीरेन्द्रसिंह के दरबार में पहुँच कर बड़ी-बड़ी गुप्त बातें इस अनूठे ढंग से खोलते हैं उनके घर में यदि मैं अपनी स्त्री को देखू तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमारे देवीसिंह ने तो एक शब्द भी मुंह से निकालना पसन्द न किया, मालूम