पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१६

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को इस बात का ताज्जुब जरूर था कि नकाबपोश को तारासिंह का हाल क्योंकर मालूम हुआ और उसने किस जानकारी पर कहा कि वह घण्टे भर के अन्दर आ जायगा। खैर, इस समय तारासिंह के आ जाने से सभी को प्रसन्नता ही हुई और देवीसिंह को भी उस तस्वीर के विषय में कुछ खुलासा हाल पूछने का मौका मिला। मगर नकाबपोशों के सामने उस विषय में बातचीत करना उचित न जाना।

नकाबपोश––(वीरेन्द्रसिंह से) देखिए, तारासिंह आ गये, जो मैंने कहा था वही हुआ। अब इन दोनों के विषय में क्या हुक्म होता है? क्या आज ये दोनों ऐयार कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के पास जाने के लिए तैयार हो सकते हैं?

तेजसिंह––हाँ, तैयार हो सकते हैं और आप लोगों के साथ जा सकते हैं, मगर दो-एक जरूरी कामों की तरफ ध्यान देने से यही उचित जान पड़ता है कि आज नहीं, बल्कि कल इन दोनों भाइयों को आपके साथ विदा किया जाय।

नकाबपोश––जैसी मर्जी, अव आज्ञा तो हम लोग बिदा हों?

तेजसिंह––क्या आज इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का किस्सा आप न सुनावेंगे?

नकाबपोश––देर तो हो गई, मगर फिर भी कुछ थोड़ा सा हाल सुनाने के लिए हम लोग तैयार हैं, आप दरियाफ्त करावें, यदि बड़े महाराज निश्चिन्त हों तो...

इशारा पाते ही भैरोंसिंह बड़े महाराज अर्थात् महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास चले गये और थोड़ी ही देर में लौट आकर बोले, "महाराज आप लोगों का इन्तजार कर रहे हैं।

इतना सुनते ही वीरेन्द्रसिंह के साथ ही साथ सब कोई उठ खड़े हुए और बात की बात में यह दरबारे-खास महाराज सुरेन्द्रसिंह का दरबारे-खास हो गया।


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महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह तथा उनके ऐयारों के सामने एक नकाबपोश ने दोनों कुमारों का हाल इस तरह बयान करना शुरू किया––

नकाबपोश––कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने भी उन पाँचों कैदियों के साथ रात को उसी बाग में गुजारा किया। सवेरा होने पर सब मामूली कामों से छुट्टी पाकर दोनों भाई उसी बीच वाले बुर्ज के पास गये और चबूतरे वाले पत्थरों को गौर से देखने लगे। उन पत्थरों में कहीं-कहीं अंक और अक्षर भी खुदे हुए थे, उन्हीं अंकों को देखते-देखते इन्द्रजीतसिंह ने एक चौखूटे पत्थर पर हाथ रखा और आनन्दसिंह की तरफ देखकर कहा, "बस इसी पत्थर को हमें उखाड़ना चाहिए।" इसके जबाव में आनन्दसिंह ने "जी हाँ" कहा और तिलिस्मी खंजर की नोक से टुकड़े को उखाड़ डाला।

पत्थर के नीचे एक छोटा-सा चौखूटा कुण्ड बना हुआ था और उस कुंड के बीचोंबीच में लोहे की एक गोल कड़ी लगी थी जिसे कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने खींचना शुरू