पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२२९

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और काँपते हुए कलेजे को सम्हाल नहीं सकता था। इस दर्रे में बहुत-सी गुफाएँ ऐसी हैं जिनमें सैकड़ों आदमी आराम से रह कर दुनियादारों की आँखों से, बल्कि वहम और गुमान से भी, अपने को छिपा सकते हैं, और इसी से समझ लेना चाहिए कि यहाँ ठहरने या बैठने वाला आदमी साधारण नहीं बल्कि जीवट और कड़े दिल का होगा।

ये सातों आदमी, जिन्हें हम बेफिक्री के साथ बैठे देखते हैं, भूतनाथ के साथी हैं और उसी की आज्ञानुसार ऐसे स्थान में अपना घर बनाये हुए पड़े हैं। इस समय भूतनाथ यहाँ आने वाला है, अतः ये लोग भी उसी का इन्तजार कर रहे हैं।

इसी समय भूतनाथ भी उन दोनों नकाबपोशों को, जिन्हें आज ही धोखा देकर गिरफ्तार किया था, लिये हुए आ पहुँचा। भूतनाथ को देखते ही वे लोग उठ खड़े हुए और बेहोश नकाबपोशों की गठरी उतारने में सहायता दी।

दोनों बेहोश जमीन पर सुला दिए गये और इसके बाद भूतनाथ ने अपने एक साथी की तरफ देखकर कहा, "थोड़ा पानी ले जाओ, मैं इन दोनों के चेहरे धोकर देखना चाहता हूँ।"

इतना सुनते ही एक आदमी दौड़ता हुआ चला गया और थोड़ी ही दूर पर एक गुफा के अन्दर घुसकर पानी का भरा हुआ लोटा लेकर चला आया। भूतनाथ ने बड़ी होशियारी से (जिसमें उनका कपड़ा भीगने न पावे) दोनों नकाबपोशों का चेहरा धोकर लालटेन की रोशनी में गौर से देखा मगर किसी तरह का फर्क न पाकर धीरे से कहा, "इन लोगों का चेहरा रँगा हुआ नहीं है।"

इसके बाद भूतनाथ ने उन दोनों को लखलखा सुँघाया जिससे वे तुरत ही होश में आकर उठ बैठे और घबराहट के साथ चारों तरफ देखने लगे। लालटेन की रोशनी में भूतनाथ के चेहरे पर निगाह पड़ते ही उन दोनों ने भूतनाथ को पहचान लिया और हँसकर उससे कहा, "बहुत खासे! तो ये सब जाल आप ही के रचे हुए थे?"

भूतनाथ––जी हाँ, मगर आप इस बात का खयाल भी अपने दिल में न लाइयेगा कि मैं आपको दुश्मनी की नीयत से पकड़ लाया हूँ।

एक नकाबपोश––(हँसकर) नहीं-नहीं, यह बात हम लोगों के दिल में नहीं आ सकती और न तुम हमें किसी तरह का नुकसान पहुँचा ही सकते हो, मगर मैं यह पूछता हूँ कि तुम्हें इस कार्रवाई के करने से फायदा क्या होगा?

भूतनाथ––आप लोगों से किसी तरह का फायदा उठाने की भी मेरी नीयत नहीं है। मैं तो केवल दो-चार बातों का जवाब पाकर ही अपनी दिलजमई कर लूँगा और इसके बाद आप लोगों को उसी ठिकाने पर पहुँचा दूँगा जहाँ से ले आया हूँ।

नकाबपोश––मगर तुम्हारा यह खयाल भी ठीक नहीं है क्योंकि तुम खुद समझ गये होगे कि हम लोग थोड़े ही दिनों के लिए अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए हैं और अपना भेद प्रकट होने नहीं देते, इसके बाद हम लोगों का भेद छिपा नहीं रहेगा, अतः इस बात को जानकर भी तुम्हें इतनी जल्दी क्यों पड़ी है और क्यों तुम्हारे पेट में चूहे कूद रहे हैं? क्या तुम नहीं जानते कि स्वयं महाराज सुरेन्द्रसिंह और राजा वीरेन्द्रसिंह हम लोगों का भेद जानने के लिए बेताब हो रहे थे, मगर कई बातों पर ध्यान देकर हम लोगों ने