पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
32
 

सरयू––अब तो मैं आपके साथ ही रहूँगी, इसलिए तिलिस्म तोड़ते समय जो कुछ कार्रवाई आप करेंगे या जो तमाशा दिखाई देगा देखूँगी, मगर यदि आज के पहले का हाल भी जब से आप इस तिलिस्म में आये हैं, सुना देते तो बड़ी कृपा होती। मैं भी समझती कि आपकी बदौलत इस तिलिस्म का पूरा-पूरा तमाशा देख लिया।

इन्द्रजीतसिह––अच्छी बात है, (आनन्दसिंह से) तुम इस तिलिस्म का हाल इन्हें सुना दो।

थोड़ी देर आराम करने तथा जरूरी कामों से छुट्टी पाने के बाद भाई की आज्ञानुसार आनन्दसिंह ने अपना तिलिस्म का हाल तथा जिस ढंग से इन्दिरा से मुलाकात हुई थी, वह सब सरयू को कह सुनाया, इसके साथ ही साथ तिलिस्म के बाहर आजकल का जैसा जमाना हो रहा था, वह सब भी बयान किया। वह सब हाल कहते-सुनते रात आधी से कुछ ज्यादा चली गई और उस समय इन लोगों ने एक विचित्र तमाशा देखा।

इस बाग के उत्तर की तरफ जो सटा हुआ मकान बना था और जिसमें राजा गोपालसिंह और कुमार में बातचीत हुई थी, हम पहले लिख आये हैं कि उसमें आगे की तरफ सात खिड़कियाँ थीं। इस समय यकायक एक आवाज आने से दोनों कुमारों और सरयू की निगाह उस तरफ गई। देखा कि बीच वाली बड़ी खिड़की (दरवाजा) खुली है और अन्दर रोशनी मालूम होती है। इन लोगों को ताज्जुब हुआ और इन्होंने सोचा कि शायद राजा गोपालसिंह आये हैं और हम लोगों से बातचीत करने का इरादा है मगर ऐसा न था, थोड़ी ही देर बाद उसके अन्दर दो-तीन नकाबपोश चलते-फिरते दिखाई दिये और इसके बाद एक नकाबपोश खिड़की में कमन्द अड़ाकर नीचे उतरने लगा, पहले तो दोनों कुमारों ओर सरयू को गुमान हुआ कि खिड़ की में राजा गोपालसिंह या इन्द्रदेव दिखाई देंगे या होंगे, मगर जब एक नकाबपोश कमन्द के सहारे नीचे उतरने लगा, तब उनका खयाल बदल गया और और वे सोचने लगे कि यह काम इन्द्रदेव या गोपालसिंह का नहीं है बल्कि किसी ऐसे आदमी का है जो इस तिलिस्म का हाल नहीं जानता, क्योंकि गोपालसिंह और इन्द्रदेव तथा इन्दिरा को यह भी मालूम है कि इस बाग की दीवार छूने या बदन के साथ लगाने लायक नहीं है, तभी तो इन्दिरा अपनी माँ के पास नहीं पहुंच सकी थी और सरयू ने यह बात इन्दिरा से कही होगी।

इन्द्रजीतसिंह ने इसी समय सरयू से पूछा कि "इस बाग की दीवार का हाल इन्दिरा को मालूम है?" इसके जवाब सरयू ने कहा, "जरूर मालूम है। मैंने खुद इन्दिरा से कहा था और इसी सबब से तो वह मेरे पास आज तक न आ सकी। निःसन्देह इन्दिरा ने यह बात राजा गोपालसिंह से कही होगी, बल्कि वह खुद जानते होंगे। इसी से मैं सोचती हूँ कि ये लोग कोई दूसरे ही हैं जो इस भेद को नहीं जानते, मगर अब तो इस दीवार का गुण जाता ही रहा।"

तीनों को ताज्जुब हुआ और तीनों आदमी टकटकी लगाकर उस तरफ देखने लगे। जब वह नकाबपोश कमन्द के सहारे नीचे उतर आया, तब दूसरे नकाबपोश ने वह कमन्द ऊपर खींच ली और उसी कमन्द में एक गठरी और बाँधकर नीचे लटकाई। दोनों कुमारों और सरयू की विश्वास हो गया कि इस गठरी में जरूर कोई आदमी है।