पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/४५

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गोपालसिंह असली न थे बल्कि नकली थे और भैरोंसिंह ने लीला के साथ जो सलूक किया वह असली राजा गोपालसिंह के इशारे से था। अब हमारे पाठक यह जानना चाहते होंगे कि यदि वह राजा गोपालसिंह नकली थे तो असली गोपालसिंह कहाँ गये, या वह किस सूरत में गये? तो इसके जवाब में केवल इतना ही कह देना काफी होगा कि असली गोपालसिंह नकली गोपालसिंह के साथ इन्द्रदेव की सूरत बना कर रथ पर सवार हुए थे और जमानिया पहुँचने के पहले ही नकली गोपालसिंह को समझा-बुझा कर रथ से उतर किसी तरफ चले गये थे। यह सब हाल यद्यपि बयानों से पाठकों को मालूम हो गया होगा, परन्तु शक मिटाने के लिए यहाँ पुनः लिख दिया गया।

राजा गोपालसिंह के होशियार हो जाने के कारण मायारानी ने तिलिस्मी बाग में तरह-तरह के तमाशे देखे जिसका कुछ हाल तो लिखा जा चुका है और बाकी आगे चल कर लिखा जायगा क्योंकि इस समय हम इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का हाल लिखना उचित समझते हैं।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने जब खिड़की में कमन्द लगा हुआ न पाया तो उन्हें ताज्जुब और रंज हुआ। थोड़ी देर तक खड़े उसी बाग की तरफ देखते रहे और तब आनन्दसिंह से बोले, "क्या हम लोगों यहाँ से कूद नहीं सकते?"

आनन्दसिंह––क्यों नहीं कूद सकते! अगर इस बात का खयाल हो कि नीचा बहुत है तो कमरबन्द खोल कर इस दरवाजे के सींकचे में बाँध और उसके सहारे कुछ नीचे लटक कर कूदने में मालूम भी न पड़ेगा।


इन्द्रजीतसिंह––हाँ, तुमने यह बहुत ठीक कहा। कमरबन्दों के सहारे हम लोग आधी दूर तक तो जरूर ही लटक सकते हैं, मगर खराबी यह है कि दोनों कमरबन्दों से हाथ धोना पड़ेगा और इस तिलिस्म में नहाने-धोने की सुविधा इन्हीं की बदौलत है। खैर कोई चिन्ता नहीं लँगोटे से भी काम चल सकता है, अच्छा लाओ कमरबन्द खोलो।

दोनों भाइयों ने कमरबन्द खोलने के बाद दोनों को एक साथ जोड़ा और उसका एक सिरा दरवाजे से लगे हुए सींकचे के साथ बाँध कर दोनों भाई बारी-बारी से नीचे लटक गये।

कमरबन्द ने आधी दूर तक दोनों भाइयों को पहुँचा दिया। इसके बाद दोनों भाइयों को कूद जाना पड़ा। कूदने के साथ ही नीचे एक झाड़ी के अन्दर से आवाज आई, "शाबाश! इतनी ऊँचाई से कूद पड़ना आप ही लोगों का काम है! मगर अब किशोरी, कामिनी इत्यादि से मुलाकात नहीं हो सकती।"

जितने आदमी कमन्द के सहारे इस बाग में लटकाये गए थे और जिन सभी को यहाँ छोड़ आनन्दसिंह अपने भाई को बुलाने के लिए ऊपर गये थे, उन सभी को मौजूद न पाकर और इस शाबाशी देने वाली आवाज को सुन कर दोनों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। दोनों भाई चारों तरफ घूम-घूम कर देखने लगे। मगर किसी की सूरत नजर न पड़ी, हाँ, एक पेड़ के नीचे सरयू को बेहोश पड़ी हुई जरूर देखा जिससे उन दोनों का ताज्जुब और भी ज्यादा हो गया।

इन्द्रजीतसिंह––(आनन्दसिंह से) यह सब खरावी तुम्हारी जरा-सी भूल के सबब