पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/५२

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जिस कमरे में दोनों कुमारों की बेहोशी दूर हो जाने के कारण आँख खुली थी वह लम्बाई में बीस और चौड़ाई में पन्द्रह गज से कम न था। इस कमरे की सजावट कुछ विचित्र ढंग की थी और दीवारों में भी एक तरह का अनूठापन था। रोशनी के शीशों (हाँडी और कन्दीलों) की जगह उसमें दो-दो हाथ लम्बी तरह-तरह की खूबसूरत पुतलियाँ लटक रही थीं और दीवारगीरों की जगह पचासों किस्म के जानवरों के चेहरे दीवारों में लगे हुए थे। दीवारें इस कमरे की लहरदार बनी हुई थीं और उन पर तरह- तरह की चित्रकारी की हुई थी। ऊपर की तरफ छत से कुछ नीचे हट कर चारों तरफ छोटी-छोटी खिड़कियाँ थीं जिससे जान पड़ता था कि ऊपर की तरफ कोई गुलामगदिश या मकान है मगर इस समय सब खिड़कियाँ बन्द थीं और इस कमरे में से कोई रास्ता ऊपर जाने का नहीं दिखाई देता था।

कुँअर आनन्दसिंह ने इन्द्रजीतसिंह से कहा, "भैया, वह बुढ़िया तो अजब आफत की पुड़िया मालूम होती है। और उन लड़कों की तेजी भी भूलने योग्य नहीं है।"

इन्द्रजीतसिंह––बेशक ऐसा ही है! ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने हम लोगों को जीता छोड़ दिया। मगर हमें भैरोंसिंह की बातों पर आश्चर्य मालूम होता है! क्या हम उसे वास्तव में कोई ऐयार समझें?

आनन्दसिंह––यदि वह ऐयार होता तो निःसन्देह हम लोगों को धोखा देने के लिए भैरोंसिंह बना होता और साथ ही इसके पोशाक भी वैसी ही रखता जैसी भैरोंसिंह पहना करता है, इसके सिवाय वह स्वयं अपने को भैरोंसिंह प्रकट करके हम लोगों का साथी बनता, ऐसा न कहता कि मैं भैरोंसिंह नहीं हूँ। मगर उसकी नौजवान औरत (बुढ़िया) के विषय में...

इन्द्रजीतसिंह––उस बुढ़िया बात जाने दो, अगर वह वास्तव में भैरोंसिंह है तो ताज्जुब नहीं कि मसखरापन करता है या पागल हो गया है। और अगर वह पागल हो गया है तो निःसन्देह उस बुढ़िया की बदौलत जो उसकी आँखों में अभी तक नौजवान बनी हुई है।

आनन्दसिंह––उस बुढ़िया को जिस तरह हो गिरफ्तार करना चाहिए।

इन्द्रजीतसिंह––मगर उसके पहले अपने को बेहोशी से बचाने का बन्दोबस्त कर लेना चाहिए क्योंकि लड़ाई-दंगे से तो हम लोग डरते ही नहीं।

आनन्दसिंह––जी हाँ, जरूर ऐसा करना चाहिए। दवा तो हम लोगों के पास मौजूद ही है और ईश्वर की कृपा से कमरे का दरवाजा भी खुला है।

दोनों भाइयों ने कमर से एक डिबिया निकाली जिसमें किसी तरह की दवा थी और उसे खाने के बाद कमरे के बाहर निकलना ही चाहते थे कि ऊपर वाले छोटे-छोटे दरवाजों में से एक दरवाजा खुला और पुनः उसी नौजवान बुढ़िया के खसम भैरोंसिंह की सूरत दिखाई दी। दोनों भाई रुक गये और आनन्दसिंह ने उसकी तरफ देखकर कहा,

च॰ स॰-5-3