पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/५३

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"अब आप यहाँ क्यों आ पहुँचे?"

भैरोंसिंह––आपके हालचाल की खबर लेने और साथ ही इसके अपनी नौजवान औरत की तरफ से आपको ज्याफत का न्यौता देने आया हूँ। मालूम होता है कि वह तुम लोगों पर आशिक हो गई है तभी खातिरदारी का बन्दोबस्त कर रही है। उसने तुम लोगों के लिए कितनी अच्छी-अच्छी चीजें खाने को तैयार की हैं और अभी तक बनाती ही जाती है।

आनन्दसिंह––(हँसकर) और उन चीजों में जहर कितना मिलाया है?

भैरोंसिंह––केवल डेढ़ छटांक! मैं उम्मीद करता हूँ कि इतने से तुम लोगों की जान न जायगी।

आनन्दसिंह––आपकी इस कृपा के लिए मैं धन्यवाद देता हूँ और आपसे बहुत ही प्रसन्न होकर आपको कुछ इनाम भी देना चाहता हूँ। आप मेहरबानी करके जरा यहाँ आइये तो अच्छी बात है।

भैरोंसिंह––बहुत अच्छा, इनाम लेने में देर करना भले आदमियों का काम नहीं है।

इतना कहकर भैरोंसिंह वहाँ से हट गया और थोड़ी ही देर बाद सदर दरवाजे की राह से कमरे के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया। जब कुँअर आनन्दसिंह के पास आया तो बोला "लाइए, क्या इनाम देते हैं।"

आनन्दसिंह ने फुर्ती से तिलिस्मी खंजर उसके हाथ पर रख दिया जिसके असर से वह एक दफा काँपा और बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। तब आनन्दसिंह ने अपने भाई से कहा, "अब इसे अच्छी तरह जाँच कर देख लेना चाहिए कि यह भैरोंसिंह ही है या कोई और?"

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, अब बखूबी पता लग जायगा, पहले इसका दाहिनी बगल वाला मस्सा देखो।

आनन्दसिंह––(भैरोंसिंह की बगल देखकर) देखिये मस्सा मौजूद है। अब कमर वाला दाग देखिये––लीजिए यह भी मौजूद है। इसके भैरोंसिंह होने में अब मुझे तो किसी तरह का सन्देह नहीं रहा।

इन्द्रजीतसिंह––अब सन्देह हो ही नहीं सकता। मैंने इस मस्से को अच्छी तरह खींच कर भी देख लिया, अच्छा अब इसे होश में लाना चाहिए।

इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह ने अपना वह हाथ जिसमें तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अँगूठी थी, भैरोंसिंह के बदन पर फेरा। भैरोंसिंह तुरन्त होश में आकर उठ बैठा और ताज्जुब से चारों तरफ देखता हुआ बोला, "वाह-वाह! मैं यहाँ क्योंकर आ गया और आप लोगों ने मुझे कहाँ पाया?"

आनन्दसिंह––मालूम होता है अब आपका पागलपन उतर गया?

भैरोंसिंह––(ताज्जुब से) पागलपन कैसा?

इन्द्रजीतसिंह––इसके पहले तुम किस अवस्था में थे और क्या करते थे, कुछ याद है?