पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७३

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रंज हुआ कि उसने थोड़ी ही देर पहले एक आदमी को डेरा उठाकर सराय के बाहर चले जाने दिया था। उसने तुरन्त ही कई सिपाहियों को उसकी गिरफ्तारी के लिए रवाना किया और तारासिंह से कहा, "मैं इसी समय इस मामले की इत्तिला करने राज-दीवान के पास जाता हूँ।"

तारासिंह––तुम जहाँ चाहो वहाँ जाओ मगर हमारा तो नुकसान हो ही गया। अस्तु, हम भी अपने मालिक के पास इस बात की इत्तिला करने जाते हैं।

जमादार––(ताज्जुब से) तो क्या आप स्वयं मालिक नहीं हैं?

तारासिंह––नहीं, हम मालिक नहीं हैं, बल्कि मालिक के गुमाश्ते हैं। हमें इस बात का बहुत रंज है कि तुमने हमसे पूछे बिना सराय का फाटक खोल दिया और चोर को सराय के बाहर निकल जाने की इजाजत दे दी, यद्यपि तुम मुझसे कह चुके थे कि आपसे पूछे बिना सराय का फाटक न खोलेंगे और इसी हिफाजत के लिए हमने अपनी जेब की अशफियाँ तुम्हारी जेब में डाल दी थीं, मगर अफसोस, मुझे बात की बिल्कुल खबर न थी कि तुम हद से ज्यादा लालची हो, हमारा माल चोरी करवा दोगे और चोर से गहरी रकम रिश्वत लेकर उसे फाटक के बाहर निकल जाने की आज्ञा दे दोगे, और मैं यह भी नहीं जानता था कि इस सराय की हिफाजत करन वाले इस किस्म का रोजगार करते हैं, अगर जानता तो ऐसी सराय में कभी थूकने भी न आता।

तारासिंह ने धमकी के ढंग पर ऐसी-ऐसी बातें जमादार से कहीं कि वह डर गया और सोचने लगा कि नाहक मैंने इनसे पूछे बिना सराय का फाटक खोलकर किसी को जाने दिया, अगर किसी को जाने न देता तो बेशक इनका माल सराय के अन्दर से ही निकल आता, अब बेशक मैं दोषी ठहरता हूँ, ताज्जुब नहीं कि सौदागर की बातों पर दीवान साहब को भी यह शक हो जाय कि जमादार ने रिश्वत ली है। अगर ऐसा हुआ तो मैं कहीं का भी न रहूँगा, मेरी बड़ी दुर्गति की जायगी। चोरी भी ऐसी नहीं है कि जिसे मैं अपने से पूरी कर सकूँ––इत्यादि बातें सोचता हुआ जमादार बहुत ही घबरा गया और बड़ी नर्मी और आजिजी के साथ तारासिंह से माफी माँगकर बोला, "निःसंदेह मुझसे बड़ी भूल हो गई, मगर मैं आपसे वादा करता हूँ कि उस चोर को जो मुझे धोखा देकर और फाटक खुलवाकर चला गया है, अभी गिरफ्तार कर लूँगा, परन्तु मेरी जिन्दगी आपके हाथ में है, अगर आप मुझ पर दया करके फाटक खोल देने वाले मेरे कसूर को छिपावेंगे तो मेरी जान बच जायगी, नहीं तो राजा साहब मेरा सिर कटवा डालेंगे और इससे आपका कुछ लाभ न होगा। मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने उससे एक कौड़ी भी रिश्वत में नहीं ली है! मुझे उस कम्बख्त ने पूरा धोखा दिया है, मगर मैं उसे निःसन्देह गिरफ्तार करूँगा और आपकी रकम को जाने न दूँगा। यदि आपको मुझ पर शक हो और आप समझते हों कि मैंने रिश्वत ली है तो फाटक पर चलकर मेरी कोठरी की तलाशी ले लीजिए और जो कुछ निकले, चाहे वह आपका दिया हो या मेरा खास हो, वह सब आप ले लीजिए मगर आप मेरी जान बचाइये!"

जमादार ने तारासिंह की हद से ज्यादा खुशामद की और यहाँ तक गिड़गिड़ाया कि तारासिंह का दिल हिल गया मगर अपना काम निकालना भी बहुत जरूरी था इस-