पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७५

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ही फाटक खुलवाकर सराय के बाहर निकल गया है। पहरे वाले सिपाही के गायब हो जाने से और भी परेशानी हो रही थी। चोर की गिरफ्तारी में कई सिपाही तो जा ही चुके थे मगर दीवान साहब के हुक्म से और भी बहुत से सिपाही भेजे गये, आखिर नतीजा यह निकला कि दोपहर के पहले ही हजरत नानक प्रसाद गिरफ्तार होकर सराय के अन्दर आ पहुँचे जो अपने खयाल में तारासिंह को गिरफ्तार कर ले गये थे और अभी तक सौदागर का चेहरा धोकर देखने भी न पाये थे, मगर उन कृपानिधान को ताज्जुब था तो इस बात का कि वे चोरी के कसूर में गिरफ्तार किए गये थे।

अभी तक दीवान साहब सराय के अन्दर मौजूद थे। नानक के आते ही चारों तरफ से मुसाफिरों की भीड़ आ जुटी और हर तरफ से नानक पर गालियों की बौछार होने लगी। जिस कमरे में तारासिंह उतरा हुआ था, उसी के आगे वाले दालान में सुन्दर फर्श के ऊपर दीवान साहब विराज रहे थे और उनके पास ही तारासिंह के दोनों शागिर्द भी अपनी असली सूरत में बैठे हुए थे। सामने आते ही दीवान साहब ने क्रोधन्भरी आवाज में नानक से कहा, "क्यों बे! तेरा इतना बड़ा हौसला हो गया कि तू हमारी सराय में आकर इतनी बड़ी चोरी करे!"

नानक––(अपने को बेतरह फँसा हुआ देख हाथ जोड़ के) मुझ पर चोरी का इलजाम किसी तरह नहीं लग सकता। मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यहाँ किसकी चोरी हुई है और मुझ पर चोरी का इलजाम कौन लगा रहा है?

दीवान––(तारासिंह के दोनों शागिर्दो की तरफ इशारा करके) इनका माल चोरी गया है और यहाँ के सभी आदमी तुझे चोर कहते हैं।

नानक––झूठ, बिल्कुल झूठ।

तारासिंह का एक शागिर्द––(दीवान से) यदि हर्ज न हो तो पहले इसका चेहरा धुलवा दिया जाय।

दीवान––क्या तुम्हें कुछ दूसरे ढंग का भी शक है? अच्छा (जमादार से) पानी मँगा कर इस चोर का चेहरा धुलवाओ।

जमादार––जो हुक्म।

नानक––चेहरा धुलवा कर क्या कीजिएगा? हम ऐयारों की सूरत हरदम बदली ही रहती है, खास कर सफर में।

दीवान––तू ऐयार है! ऐयार लोग भी कहीं चोरी करते हैं?

नानक––जी मैं कह चुका हूँ कि चोरी का इलजाम मुझ पर नहीं लग सकता।

तारा का एक शागिर्द––चोरी तो अच्छी तरह साबित हो जायगी, जरा अपने माल-असबाब की तलाशी तो होने दो! (दीवान से) लीजिए, पानी भी आ गया, अब इसका चेहरा धुलवाइये।

जमादार––(पानी की गगरी नानक के सामने धर कर) लो, अब पहले अपना चेहरा साफ कर डालो।

नानक––मैं अभी अपना चेहरा साफ कर डालता हूँ। चेहरा धोने में मुझे कोई उज्र नहीं है, क्योंकि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि ऐयारों की सूरत प्रायः बदली रहती है