पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
93
 

बेहोशी को दवा का शक हुआ मगर कुछ बोलना मुनासिब न समझकर चुप रह गई। जब तक दोनों कुमार भोजन करते रहे तब तक आनन्दी पंखा हाँकती रही। दोनों कुमार इन दोनों औरतों का बर्ताव देखकर बहुत खुश हुए और मन में कहने लगे कि ये औरतें जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही नेक भी हैं, जिनके साथ व्याही जायेंगी उनके बड़भागी होने में कोई सन्देह नहीं (क्योंकि ये दोनों कुमारी मालूम होती थीं)।

भोजन समाप्त होने पर आनन्दी ने दोनों कुमारों और भैरोंसिंह के हाथ धुलाये और इसके बाद फिर दोनों कुमार और भैरोंसिंह इन्द्रानी और आनन्दी के साथ उसी पहले वाले कमरे में आये। इन्द्रानी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "अब थोड़ी देर आप लोग आराम करें और मुझे इजाजत दें तो···।"

इन्द्रजीतसिंह––मेरा जी तुम लोगों का हाल जानने के लिए बेचैन हो रहा है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम एक पल के लिए भी कहीं जाओ जब तक कि मेरी बातों का पूरा-पूरा जवाब न दे लो। मगर यह बताओ कि तुम लोग भोजन कर चुकी हो या नहीं?

इन्द्रानी––अभी तो हम लोगों ने भोजन नहीं किया है, जैसी मर्जी हो···

इन्द्रजीतसिंह––तब मैं इस समय नहीं रोक सकता। मगर इस बात का वादा जरूर ले लूँगा, कि तुम घण्टे से ज्यादा न लगाओगी, और मुझे अपने इन्तजार का दु:ख न दोगी।

इन्द्रानी––जी मैं वादा करती हूँ कि घण्टे भर के अन्दर ही आपकी सेवा में लौट आऊँगी।

इतना कहकर आनन्दी को साथ लिए हुए इन्द्रानी चली गई और दोनों कुमार तथा भैरोंसिंह को बातचीत करने का मौका दे गई।


6

इन्द्रानी और आनन्दी के चले जाने के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह आनन्दसिंह और भैरोंसिंह में यों बातचीत होने लगी––

इन्द्रजीतसिंह––(भैरोंसिंह से) असल बात जो मैं इन्द्रानी से पूछना चाहता था उसका मौका तो अभी तक मिला ही नहीं।

भैरोंसिंह––यही कि तुम कौन और कहाँ की रहने वाली हो, इत्यादि···!

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, और किशोरी, कामिनी, कमलिनी इत्यादि कहाँ हैं तथा उनसे मुलाकात क्योंकर हो सकती है?

आनन्दसिंह––(भैरोंसिंह से)इस बात का कुछ पता तो शायद तुम भी दे सकोगे, क्योंकि हम लोगों के पहले तुम इन्द्रानी को जान चुके हो और कई ऐसी जगहों में भी घूम चुके हो जहाँ हम लोग अभी तक नहीं गए हैं।