पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/११६

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जाने वाले हैं।

इन्द्रजीतसिंह--यह भी मालूम है।

कमलिनी--मेरी इच्छा है कि यदि आप आप आज्ञा दें, तो लाडिली को साथ लेकर मैं भी उसी डेरे में चली जाऊँ।

इन्द्रजीतसिंह--क्यों ? तुम्हें यहाँ रहने में परहेज ही क्या हो सकता है ?

कमलिनी--नहीं-नही, मुझे किस बात का परहेज होगा, मगर यों ही जी चाहता है कि मैं दो-चार दिन अपने बाप के साथ ही रहकर उनकी खिदमत करूं।

इन्द्रजीतसिंह--यह दूसरी बात है, इसकी इजाजत तुम्हें अपने मालिक से लेनी चाहिए । मैं कौन हूँ जो इजाजत दूं?

कमलिनी--इस समय वे तो यहाँ हैं, नहीं अतः उनके बदले में मैं आप ही को अपना मालिक समझती हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--(मुस्कराकर) फिर तुमने वही रास्ता पकड़ा ? खैर, मैं इस बात की इजाजत न दूंगा।

कमलिनी--तो मैं आज्ञा के विरुद्ध कुछ न करूंगी।

इन्द्रजीतसिंह–-(भैरोंसिंह इनकी बातचीत का ढंग देखते हो?

भैरोंसिंह–(हँसकर) शादी हो जाने पर भी ये आपको नहीं छोड़ना चाहतीं, तो में क्या करूं?

कमलिनी--अच्छा, मुझे एक बात की इजाजत तो जरूर दीजिए।

इन्द्रजीतसिंह--वह क्या?

कमलिनी--आपकी शादी में मैं आपसे एक विचित्र दिल्लगी करना चाहती हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--वह कौन-सी दिल्लगी होगी?

कमलिनी—यह बता दूंगी तो उसमें मजा ही क्या रह जायेगा ? बस, आप इतना कह दीजिए कि उस दिल्लगी से रंज न होंगे, चाहे वह कैसी गहरी क्गों न हो।

इन्द्रजीतसिंह—(कुछ सोचकर) खैर, मैं रंज न करूंगा।

इसके बाद थोड़ी देर तक हँसी की बातें होती रहीं, और फिर सब उठकर अपने-अपने ठिकाने चले गये।


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ब्याह की तैयारी और हँनी-खुशी में ही कई सप्ताह बीत गये और किसी को कुछ मालूम न हुआ। हाँ; कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को खुशी के साथ ही रंज और उदासी से भी मुकाबला करना पड़ा। यह रंज और उदासी क्यों? शायद कमलिनी और लाड़िली के सबब से हो। जिस तरह कुंअर इन्द्रजीतसिंह कमलिनी से मिलकर और उसकी जुबानी उसके ब्याह का हो जाना सुनकर दुःखी हुए, उसी तरह आनन्दसिंह को भी लाडिली

च० स०-6-7