पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१३२

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पर, खास करके दोनों कुमारों तथा किशोरी और कामिनी पर किये हैं, वह किसी से छिपे नहीं हैं। किशोरी का खयाल है कि इसका बदला किसी तरह अदा हो ही नहीं सकता, और बात भी ऐसी ही है, अब किशोरी ने बात-ही-बात में अपने दिल का हाल मुझसे भी कह दिया और इस बारे में जो कुछ उसने सोच रखा था, वह भी बयान किया, किशोरी कहती है कि अगर मैं शादी न करूँ या शादी होने के पहले ही इस दुनिया से उठ जाऊँ तो उसके अहसान और ताने से कुछ बच सकती हूँ। इस विषय पर जब मैंने किशोरी को बहुत-कुछ समझाया तो बोली कि खैर, अगर मेरी शादी के पहले कमलिनी की शादी कुँअर इन्द्रजीतसिंह के साथ हो जायेगी तब मैं सुख से जिंदगी बिता सकूँगी और उसके अहसान से भी हलकी हो जाऊँगी, क्योंकि ऐसा होने से कमलिनी को पटरानी की पदवी मिलेगी और उसी का लड़का गद्दी का मालिक समझा जायेगा। मैं छोटी और कमलिनी की लौंडी होकर रहूँगी; तभी मेरे दिल को तस्कीन होगा और मैं समझूगी कि कमलिनी के अहसान का बोझ मेरे सिर से उतर गया।'

चन्द्रकान्ता––शाबाश! शाबाश!

वीरेन्द्रसिंह––बेशक, किशोरी ने बड़े हौसले की और लासानी बात सोची!

चपला––बेशक, यह साधारण बात नहीं है, यह बड़े कलेजे वाली औरतों का काम है, और इससे बढ़कर किशोरी कुछ कर ही नहीं सकती थी।

गोपालसिंह––मैंने जब कमला की जुबानी यह बात सुनी तो दंग हो गया और मन में किशोरी की तारीफ करने लगा। सच तो यों है कि यह बात मेरे दिल में भी जम गई। अब मैंने कमला से वादा तो कर दिया कि 'ऐसा ही होगा', मगर तरद्दुद में पड़ गया कि यह काम क्योंकर पूरा होगा, क्योंकि यह बात बड़ी ही कठिन बल्कि असम्भव थी कि इन्द्रजीतसिंह और कमलिनी इस राय को मंजूर करें। इसके अतिरिक्त यह भी मंजूरी नहीं हो सकती थी कि हमारे महाराज इस बात को स्वीकार कर लेंगे।

भैरोंसिंह––बेशक, यह कठिन काम था, इन्द्रजीतसिंह इस बात को कभी मंजूर न करते।

गोपालसिंह––कई दिन के सोच-विचार के बाद मैंने और भैरोंसिंह ने मिलकर एक तरकीब निकाल ली और किसी न किसी तरह कमलिनी और लाड़िली को इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दोनों की शादी इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के साथ करा दी। उन दिनों कमलिनी के पिता बलभद्रसिंहजी, भूतनाथ की मदद से छूटकर यहाँ (अर्थात् बगुले वाले तिलिस्मी मकान में) आ चुके थे। अब मैं तिलिस्म के अन्दर ही अन्दर यहाँ आया और बलभद्रहिंजी को कन्यादान करने के लिए समझा-बुझाकर जमानिया ले गया। उस दिन भूतनाथ बहुत परेशान हुआ था और भैरोंसिंह मेरे साथ था। हम लोग पहले जब इस मकान में आये थे, तो भूतनाथ और बलभद्रसिंहजी के नाम की एक-एक चिट्ठी दोनों की चारपाई पर रख के चले गये थे। बलद्रसिंहजी की चिट्ठी में उनकी दिलजमई के लिए एक अँगूठी भी रखी थी जो उन्होंने ब्याह के पहले मुझे बतौर सगुन के दी थी। इसके बाद दूसरे दिन फिर पहुँचे और भूतनाथ को अपना पूरा-पूरा निश्चय देकर बलभद्र-