पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१५९

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बहुत जोर मारा, मगर मैंने उसकी एक न सुनी।

हरदीन––आपने यह बहुत अच्छा किया, नहीं तो इस समय बड़ा ही अन्धेर हो गया होता।

मैं––खैर, यह तो बताओ कि यकायक वह मेरी जान का दुश्मन क्यों बन बैठा? वह तो मेरी दोस्ती का दम भरता था!

हरदीन––इसका सबब वही लक्ष्मीदेवी वाला भेद है। मैं अपनी भूलपर अफसोस करता हूँ कि मुझसे चूक हो गई जो मैंने वह भेद आपसे खोल दिया। मैंने तो राजा गोपालसिंहजी का भला करना चाहा था मगर उन्होंने नादानी करके मामला ही बिगाड़ दिया। उन्होंने जो कुछ आपसे सुना था लक्ष्मीदेवी से कहकर दारोगा और रघुबर को आपका दुश्मन बना दिया, क्योंकि इन्हीं दोनों की बदौलत वह इस दर्जे को पहुँची, इन्हीं दोनों की बदौलत हमारे महाराज (गोपालसिंह के पिता) मारे गये और इन्हीं दोनों ने लक्ष्मीदेवी को ही नहीं बल्कि उसके घर भर को बर्दाद कर दिया।

मैं––इस समय तो तुम बड़े ही ताज्जुब की बातें सुना रहे हो!

हरदीन––मगर इन बातों को आप अपने ही दिल में रखकर जमाने की चाल के साथ काम करें नहीं तो आपको पछताना पड़ेगा, यद्यपि मैं यह कदापि न कहूँगा कि आप राजा गोपालसिंह का ध्यान छोड़ दें और उन्हें डूबने दें क्योंकि वह आपके दोस्त हैं।

मैं––जैसा तुम चाहते हो, मैं वैसा ही करूँगा। अच्छा, पहले यह बताओ कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह पर क्या बीती?

हरदीन––उन दोनों को दारोगा ने अपने पंजे में फँसा कर कहीं कैद कर दिया है इतना तो मुझे मालूम है मगर इसके बाद का हाल मैं कुछ भी नहीं जानता, न मालूम वे मार डाले गये या अभी तक कहीं कैद हैं। हाँ, उस गदाधरसिंह को इसका हाल शायद मालूम होगा जो रणधीरसिंहजी का ऐयार है और जिसने नानक की माँ को धोखा देने के लिए कुछ दिन तक अपना नाम रघुबरसिंह रख लिया था तथा जिसकी बदौलत यहाँ की गुप्त कुमेटी का भण्डा फूटा है। उसने इस रघुबीरसिंह और दारोगा को खूब ही छकाया है। लक्ष्मीदेवी की जगह मुन्दर की शादी करा देने की बाबत इनके और हेलासिंह के बीच में जो पत्र-व्यवहार हुआ, उसकी नकल भी गदाधरसिंह (रणधीरसिंह के ऐयार) के पास मौजूद है जो कि उसने समय पर काम देने के लिए असल चिट्ठियों से अपने हाथ से नकल की थी। अफसोस, उसने रुपये की लालच में पड़ कर रघुबरसिंह और दारोगा को छोड़ दिया और इस बात को छिपा रक्खा कि यही दोनों उस गुप्त कमेटी के मुखिया हैं। इस पाप का फल गदाधरसिंह को जरूर भोगना पड़ेगा, ताज्जुउ नहीं कि एक दिन उन चिट्ठियों की नकल से उसी को दुःख उठाना पड़े और वे चिट्ठियाँ उसी के लिए काल बन जायें।

इस समय मुझे हरदीन की वे बातें अच्छी तरह याद पड़ रही हैं। मैं देखता हूँ कि जो कुछ उसने कहा था सच उतरा। उन चिट्ठियों की नकल ने खुद भूतनाथ का गला दबा दिया जो उन दिनों गदाधरसिंह के नाम से मशहूर हो रहा था! भूतनाथ का हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है और इधर जो कुछ हो चुका है वह सब भी मैं सुन चुका