पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६२

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कृष्ण जिन्न बने हुए थे, यह झूठ बयान किया था कि 'राजा गोपालसिंह के छूटने के बाद मैंने उन कागजों का पता लगाया है जो इस समय मेरे ही साथ दुश्मनी कर रहे हैं। इत्यादि । असल में वे कागज मेरे पास उसी समय भी मौजूद थे, जब जमनिया में मुझसे और भरतसिंह से मुलाकात हुई थी। आप यह हाल इनकी जुबानी सुन चुके होंगे।

भरतसिंह-हां भूतनाथ, इस समय मैं वही हाल बयान कर रहा हूँ, अभी कह नहीं चुका।

भूतनाथ-खैर, तो अभी श्रीगणेश है । अच्छा, आप बयान कीजिए।

भरतसिंह ने फिर इस तरह बयान किया-

भरतसिंह-दूसरे दिन आधी रात के समय जब मैं गहरी नींद में सोया हुआ था हरदीन ने आकर मुझे जगाया और कहा, "लीजिये, मैं गदाधरसिंहजी को ले आया हूँ, उठिये और इनसे मुलाकात कीजिए, ये बड़े ही लायक और बात के धनी आदमी हैं !" मैं खुशी-खुशी उठ बैठा और बड़ी नर्मी के साथ भूतनाथ से मिला । इसके बाद मुझसे और भूतनाथ (गदाधर) से इस तरह बातचीत होने लगी-

भूतनाथ–साहब, आपका यह हरदीन बड़ा ही नेक और दिलावर है, ऐसा जीवट का आदमी दुनिया में कम ही दिखाई देगा। मैं तो इसे अपना परम हितैषी और मित्र समझता हूँ, इसने मेरे साथ जो कुछ भलाइयां की हैं उनका बदला मैं किसी तरह चुका ही नहीं सकता । मुझसे कभी की जान, पहचान नहीं, मुलाकात नहीं-ऐसी अवस्था में मैं पहले-पहल बिना मतलब के आपके घर कदापि न आता परन्तु, इनकी इच्छा के विरुद्ध मैं नहीं चल सका, इन्होंने यहां आने के लिए कहा और मैं बेधड़क चला आया। इनकी जुबानी मैं सुन भी चुका हूँ कि आज कल आप किस विकट फेर में पड़े हुए हैं और मुझसे मिलने की जरूरत आपको क्यों पड़ी अस्तु हरदीन की आज्ञानुसार मैं वह कागज का मुट्ठा भी दिखाने के लिए लेता आया हूँ जिससे आप को दारोगा और रघुबरसिंह की हरामजदगी और राजा गोपालसिंह की शादी का पूरा-पूरा हाल मालूम हो जायेगा, मगर खूब याद रखिये कि इस कागज को पढ़कर आप बेताब हो जायेंगे, आपको बेहिसाब गुस्सा चढ़ आवेगा और आपका दिल बेचैनी के साथ तमाम भण्डा फोड़ देने के लिए तैयार हो जायगा, मगर नहीं, आपको ये सब-कुछ बर्दाश्त करना ही पड़ेगा, दिल को सम्हालना और इन बातों को हर तरह से छिपाना पड़ेगा। मुझे हरदीन ने आपका बहुत ज्यादा विश्वास दिलाया है तभी मैं यहाँ आया हूँ, और यह अनूठी चीज भी दिखाने के लिए तैयार हूँ नहीं तो कदापि न आता।

मैं--आपनी बड़ी मेहरबानी की जो मुझ पर भरोसा किया और यहां तक चले आये, मेरी जुबान से आपका रत्ती भर भेद भी किसी को नहीं मालूम हो सकता, इसका आप विश्वास रखिये । यद्यपि मैं इस बात का निश्चय कर चुका हूँ कि गोपालसिंह के मामले में मैं अब कुछ भी दखल न दूंगा मगर इस बात का अफसोस जरूर है कि वह मेरे मित्र हैं और दुष्टों ने उन्हें बेतरह फंसा रक्खा है।

भूतनाथ--केवल आप ही को नहीं, इस बात का अफसोस मुझको भी है और मैं खुद गोपालसिंह को इस आफत से छुड़ाने का इरादा कर रहा हूँ। मगर लाचार हूँ कि