पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६३

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बलभद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी का कुछ भी पता नहीं लगता और जब तक उन दोनों का पता न लग जाय तब तक इस मामले को उठाना बड़ी भारी भूल है।

मैं-मगर यह तो आपको निश्चय है कि इन सब बातोंका कर्ता-धर्ता यह कम्बख्त दारोगा ही है?

भूतनाथ-भला इसमें भी अब कुछ शक है ? लीजिए इस कागज के मुट्ठ का पढ़ जाइये तब आपको भी विश्वास हो जायगा।

इतना कहकर भूतनाथ ने कागज का एक मुट्ठा, निकाला और मेरे आगे रख दिया तथा मैंने भी उसे पढ़ना शुरू किया। मैं आपसे नहीं कह सकता कि उन कागजों को पढ़कर मेरे दिल की कैसी अवस्था हो गई और दारोगा तथा रघुबरसिंह पर मुझे कितना क्रोध चढ़ आया। आप लोग तो उसे पढ़-सुन चुके हैं अतएव इस बात को खुद समझ सकते हैं । मैंने भूतनाथ से कहा कि “यदि तुम मेरा साथ दो तो मैं आज ही दारोगा और रघुबरसिंह को इस दुनिया से उठा दूं।"

भूतनाथ -इससे फायदा ही क्या होगा? और काम ही कितना बड़ा है ? मुझे खुद इस बात का खयाल है और मैं लक्ष्मीदेवी का पता लगाने के लिए दिल से कोशिश कर रहा हूँ, तथा आपका हरदीन भी उसका पता लगा रहा है। इस तरह समय के पहले छेड़छाड़ करने से खुद अपने को झूठा बनना पड़ेगा और लक्ष्मीदेवी भी जहां की तहाँ पड़ी सड़ेगी या मर जायगी।

मैं हाँ ठीक है, अच्छा यह तो बताइये कि आप हरदीन की इतनी इज्जत क्यों करते हैं?

भूतनाथ-इसलिए मेरी कि यह सब जानकारी इन्हीं की बदौलत है। इन्होंने ही मुझे उस कमेटी का पता बताया और उसका भेद समझाया और इन्हीं की मदद से मैंने उस कमेटी का सत्यानाश किया।

मैं-(हरदीन से) और तुम्हें उस कमेटी का भेद क्योंकर मालूम हुआ?

हरदीन-(हाथ जोड़कर) माफ कीजियेगा, मैं उस कमेटी का मेम्बर था और अभी तक उन लोगों के खयाल से उन सभी का पक्षपाती बना हुआ हूँ, मगर मैं ईमान- दार मेम्बर था, इसलिए ऐसी बातें मुझे पसन्द न आई और मैं गुप्त रीति से उन लोगों का दुश्मन बन बैठा, मगर इतना करने पर भी अभी तक मेरी जान इसलिए बची हुई है कि आपके घर में मेरे सिवाय और कोई इन लोगों का साथी नहीं है।

मैं--तो क्या अभी तक तुम उन लोगों के साथी बने हुए हो और वे लोग अपने दिल का हाल तुमसे कहते हैं?

हरदीन--जी हां, तभी तो मैंने आपको रघुबरसिंह के पंजे से बचाया था, जब वह आपको घोड़े पर सवार कराके ले चला था!

मैं-अगर ऐसा हो तो तुम्हें यह भी मालूम हो गया होगा कि उस दिन घात न लगने के कारण रघुबरसिंह ने अब कौन-सी कार्रवाई सोची है।

हरदीन--जी हां, पहले तो उसने मुझसे पूछा था कि 'भरतसिंह ने ऐसा क्यों किया, क्या उसको मेरी नीयत का कुछ पता लग गया है?' जिसके जवाब में मैंने कहा