पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६६

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सुना जाये।

और सभी ने भी यही राय दी, आखिर महाराज हुक्म दिया कि 'कल दरबारे आम किया जाये और कैदी लोग दरबार में लाये जायें।'

दिन पहर भर से कुछ कम बाकी था, जब यह छोटा-सा दरबार बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने ठिकाने चले गये, कुंअर आनन्दसिंह शिकारी कपड़े पहनकर तारासिंह को साथ लिए महल के बाहर आए और दोनों दोस्त घोड़ों पर सवार हो जंगल की तरफ रवाना हो गये।


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घोड़े पर सवार तारासिंह को साथ लिए हुए कुंअर आनन्दसिंह जंगल ही जंगल घूमते और साधारण ढंग पर शिकार खेलते हुए बहुत दूर निकल गये और जब दिन बहुत कम बाकी रह गया, तब धीरे-धीरे घर की तरफ लौटे।

हम ऊपर के किसी बयान में लिख आये हैं कि 'अटारी पर एक सजे हुए बँगले में बैठी हुई किशोरी, कामिनी और कमलिनी वगैरह ने जंगल से निकलकर घर की तरफ आते हुए कुंअर आनन्दसिंह और तारासिंह को देखा तथा यह भी देखा कि दस-बारह नकाबपोशों ने जंगल में से निकल इन दोनों पर तीर चलाये और ये दोनों उनका पीछा करते हुए पुनः जंगल के अन्दर घुस गए' – इत्यादि ।

यह वही मौका है जिसका हम जिक्र कर रहे हैं । उस समय कमला ने एक लौंडी की जबानी इन्द्रजीतसिंह को इस बात की खबर दिलवा दी थी, और खबर पाते ही कुंअर इन्द्रजीतसिंह, भैरोंसिंह तथा और भी बहुत से आदमी आनन्दसिंह की मदद के लिए रवाना हो गए थे।

असल बात यह थी कि भूतनाथ की चालाकी से शर्मिन्दगी उठाकर भी नानक ने सब नहीं किया, बल्कि पुनः इन लोगों का पीछा किया और अबकी दफे इस ढंग से जाहिर हुआ था कि मौका मिले तो आनन्दसिंह को तीर का निशाना बनावे और इसी तरह बारी-बारी से अपने दुश्मनों की जान लेकर कलेजा ठंडा करे । मगर उसका यह इरादा भी काम न आया; आनन्दसिंह और तारासिंह की चालाकी और उनके घोड़ों की चपलता के कारण उसका निशाना कारगर न हुआ और उन्होंने तेजी के साथ उसके सिर पर पहुंच कर सभी को हर तरह से मजबूर कर दिया। तब तक मदद लिए हुए कुंअर इन्द्र- जीतसिंह भी जा पहुंचे और आठ साथियों के सहित बेईमान नानक को गिरफ्तार कर लिया। यद्यपि उसी समय यह भी मालूम हो गया कि इसके साथियों में से कई आदमी निकल गए, मगर इस बात की कुछ परवाह न की गई और जो कुछ गिरफ्तार हो गए थे, उन्हीं को लेकर सब कोई घर की तरफ रवाना हो गए।

कम्बख्त नानक पर हर तरह की रिआयत की गई, बहुत कड़ी सजा पाने के योग्य होने पर भी उसे किसी तरह की सजा न दी गई, और बह इस खयाल से बिल्कुल