पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१७३

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करता हूँ। (और लोगों की तरफ देखकर) मेरे किस्से से भूतनाथ का भी बहुत ही बड़ा सम्बन्ध है, मगर इस खयाल से कि महाराज ने भूतनाथ का कसूर माफ करके उसे अपना ऐयार बना लिया है, मैं अपने किस्से में उन बातों का जिक्र छोड़ता जाऊँगा जिनसे भूतनाथ की बदनामी होती है, इसके अतिरिक्त भूतनाथ प्रतिज्ञानुसार महाराज के आगे पेश करने लिए स्वयं अपनी जीवनी लिख रहा है जिससे महाराज को पूरा-पूरा हाल मालूम हो जायगा, अतः अब मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

मैं मिर्जापुर के रहने वाले दीनदयालसिंह ऐयार का लड़का हूँ । मेरे पिता महा- राज धौलपुर के यहां रहते थे और वहाँ उनकी बहुत इज्जत और कदर थी। उन्होंने मुझे ऐयारी सिखाने में किसी तरह की त्रुटि नहीं की। जहाँ तक हो सका, दिल लगाकर मुझे ऐयारी सिखाई और मैं भी इस फन में खूब हो शियार हो गया, परन्तु पिता के मरने के बाद मैंने किसी रियासत में नौकरी नहीं की। मुझे अपने पिता की जगह मिलती थी और महाराज मुझे बहुत चाहते थे, मगर मैंने पिता के मरने के साथ ही रियासत छोड़ दी और अपने जन्म-स्थान मिर्जापुर में चला आया क्योंकि मेरे पिता मेरे लिए बहुत दौलत छोड़ गये थे और मुझे खाने-पीने की कुछ परवाह न थी। पिता के देहान्त के साल भर पहले ही मेरी माँ मर चुकी थी, अतएव केवल मैं और मेरी स्त्री दो आदमी अपने घर के मालिक थे।

जमानिया की रियासत से मुझे किसी तरह का सम्बन्ध नहीं था, परन्तु इसलिए कि मैं एक नामी ऐयार का लड़का और खुद भी ऐयार था तथा बहुत से ऐयारों से गहरी जान-पहचान रखता था, मुझे चारों तरफ की खबरें बराबर मिला करती थीं, इसी तरह जामानिया में जो कुछ चालवाजियाँ हुआ करती थीं, वे भी मुझसे छिपी हुई न थीं। भूतनाथ की और मेरी स्त्री आपस में मौसेरी बहिनें होती हैं और भूतनाथ का जमानिया से बहुत घना संबंध हो गया था, इसलिए जमानिया का हाल जानने के लिए मैं उद्योग भी किया करता था, मगर उसमें किसी तरह का दखल नहीं देता था। (दारोगा की तरफ इशारा करके)इस हरामखोर दारोगा ने रियासत पर अपना दबाव डालने की नीयत से विचित्र ढोंग रच लिया था, शादी नहीं की थी और बाबाजी तथा ब्रह्मचारी के नाम से अपने को प्रसिद्ध कर रखा था, बल्कि मौके मौके पर लोगों को कहा करता था कि मैं तो साधू आदमी हूँ, मुझे रुपये-पैसे की जरूरत ही क्या है, मैं तो रियासत की भलाई और परोपकार में अपना समय बिताना चाहता हूँ, इत्यादि । परन्तु वास्तव में यह परले सिरे का ऐयाश, बदमाश और लालची था जिसके विषय में कुछ विशेष कहना मैं पसन्द नहीं करता।

मेरे पिता और इन्द्रदेव के पिता दोनों दिली दोस्त और ऐयारी में एक ही गुरु के शिष्य थे, अत एव मुझमें और इन्द्रदेव में भी उसी प्रकार की दोस्ती और मुहब्बत थी। इसलिए मैं प्रायः इन्द्रदेव से मिलने के लिए उनके घर जाया करता और कभी-कभी वे भी मेरे घर आया करते थे । जरूरत पड़ने पर इन्द्रदेव की इच्छानुसार मैं उनका कुछ काम कर दिया करता और उन्हीं के यहाँ कभी-कभी इस कम्बख्त दारोगा से भी मुलाकात हो जाया करती थी, बल्कि कहना चाहिए कि इन्द्रदेव ही के सबब से दारोगा, जयपाल राजा गोपालसिंह और भरतसिंह तथा जमानिया के और भी कई नामी आदमियों में मेरी