पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१९७

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मैं-नहीं-नहीं, हम लोग तुम पर जबर्दस्ती नहीं करना चाहते, बल्कि तुम्हारी खुशी और हिफाजत का खयाल रखकर अपना काम निकालना चाहते हैं।

पहला-इसके अतिरिक्त हम लोगों को इस बात का भी निश्चय हो जाना चाहिए कि आप लोग वास्तव में दलीपशाह के ऐयार हैं और हम लोगों की हिफाजत के लिए आपने कोई अच्छी तरकीब सोच ली है, अगर हम लोग आपकी किसी भी बात का जवाब दें।

सिपाही की आखिरी बात से हमें निश्चित हो गया कि वे लोग हमारे कब्जे में आ जायेंगे और हमारी बात मान लेंगे और अगर ऐसा न करते तो वे लोग कर ही क्या सकते थे? आखिर हर तरह का ऊँच-नीच दिखाकर हमने उन्हें राजी कर लिया और अपना सच्चा परिचय देकर उन्हें विश्वास करा दिया कि जो कुछ हमने कहा है, सब सच है । इसके बाद हमने जो कुछ पूछा, उन्होंने साफ-साफ बता दिया और जो कुछ देखना चाहा (बेगम के नाम का पत्र इत्यादि) दिखा दिया। गिरिजाकुमार के बारे में तो जो कुछ पहले मालूम कर चुके थे, उससे ज्यादा हाल कुछ मालूम न हुआ क्योंकि उसके विषय में उन्हें कुछ विशेष खबर ही न थी, केवल इतना ही जानते थे कि असली बिहारीसिंह के पहुँचने पर नकली बिहारीसिंह (गिरिजाकुमार) गिरफ्तार कर लिया गया, हां, दूसरी बात यह मालूम हो गई कि वे दोनों आदमी दारोगा और जयपाल की चिट्ठी लेकर बेगम के पास जा रहे हैं, कल संध्या-समय तक बेगम के पास पहुंच जायेंगे और परसों संध्या को बेगम को साथ लिए हुए किश्ती की सवारी से गंगाजी की तरफ से रातोंरात जमानिया लौटेंगे । अतः हम लोगों ने उन दोनों सिपाहियों को जिस तरह बन पड़ा, इस बात पर राजी कर किया कि जब तुम लोग बेगम को लिए हुए रातोंरात गंगाजी की राह लौटो, तो अमुक समय अमुक स्थान पर कुछ देरी के लिए किसी बहाने से किश्ती किनारे लगा कर रोक लेना, उस समय हम लोग डाकुओं की तरह पहुंचकर बेगम को गिरफ्तार कर लेंगे और जो कुछ चीजें हमारे मतलब की उसके पास होंगी उन्हें ले लेंगे, मगर तुम लोगों को छोड़ देंगे, इस तरह से हमारा काम भी निकल जायेगा और तुम लोगों पर कोई किसी तरह का शक भी न कर सकेगा।

"रुपये पाने के साथ ही अपना किसी तरह का हर्ज न देखकर दोनों सिपाहियों ने इस बात को भी मंजूर कर लिया। इसके बाद हम लोगों में मेल-मुहब्बत की बातचीत होने लगी और तमाम रात हम लोगों ने उस पेड़ पर काट दी। सवेरा होने पर दोनों सिपाही हमसे बिदा होकर चले गये, हम सब लोग आपस में विचार करने लगे कि अब क्या करना चाहिए। अंत में यह निश्चय करके कि अर्जुनसिंह तो गिरिजाकुमार को छुड़ाने के लिए जमानिया जायें और मैं बेगम के फंसाने का बन्दोबस्त करूँ, हम दोनों भी एक-दूसरे से बिदा हुए।

"इस जगह मैं किस्से के तौर पर थोड़ा-सा हाल गिरिजाकुमार का बयान करूंगा जो कुछ दिन बाद मुझे उसी की जुबानी मालूम हुआ था।

"अर्जुनसिंह की कैद से छुटकारा पाकर बिहारीसिंह सीधे जमानिया दारोगा के पास चला, मगर ऐसे ढंग से गया कि किसी को कुछ मालूम हुआ, न गिरिजाकुमार ही को