पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२०३

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गिरिजाकुमार--इसी से तो मैं कहता हूँ।

दारोगा--खैर, ऐसा ही होगा और मैं आज ही बेगम को लाने के लिए आदमी भेजता हूँ। (बिहारीसिंह की तरफ देखकर) तुम अपनी सूरत बदलने का भी बन्दोबस्त करो!

बिहारीसिंह--बहुत अच्छा।

यहाँ तक बयान करके दलीपशाह चुप हो गया और कुछ दम लेकर फिर इस तरह बयान करने लगा-

"इस समय मेरी बातें सुन-सुनकर दारोगा और जयपाल वगैरह के कलेजे पर साँप लोट रहा होगा और उस समय की बातें याद करके ये बेचैन हो रहे होंगे, क्योंकि वास्तव में गिरिजाकुमार ने उन्हें ऐसा उल्लू बनाया कि उस बात को ये कभी भूल नहीं सकते । खैर, उस समय जब हम दोनों आदमी जंगल में दारोगा के सिपाहियों से जुदा हुए, हमें गिरिजाकुमार के मामले की कुछ खबर न थी, अगर खबर होती तो बेगम को न लूटते और न अर्जुनसिंह ही गिरिजाकुमार की खोज में जमानिया जाते । खैर, फिर भी जो कुछ हुआ, अच्छा ही हुआ और अब मैं आगे का हाल बयान करता हूँ।"


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दलीपशाह ने फिर इस तरह अपना किस्सा शुरू किया-

"गिरिजाकुमार ने अपनी बातचीत में दारोगा और बिहारीसिंह को ऐसा उल्लू बनाया कि उन दोनों को गिरिजाकुमार पर पूरा-पूरा भरोसा हो गया और वह खुशी के साथ जमानिया में रहकर बेगम का इन्तजार करने लगा, बल्कि दारोगा के साथ जाकर उसने खास बाग का रास्ता और मायारानी को भी देख लिया था। इधर अर्जुनसिंह गिरिजाकुमार की खोज में जमानिया गये और मैं बेगम को गिरफ्तार करने की फिक्र में पड़ा।

"पहले तो मैं अपने घर गया और वहाँ से कई आदमियों का इन्तजाम करके लौटा । फिर ठीक समय पर गंगा के किनारे उस ठिकाने पहुंच गया जहाँ बेगम की किश्ती किनारे लगाकर लूट लेने की बातचीत कही-बदी थी।

"मैं इस घटना का हाल बहुत बढ़ाकर न कहूंगा कि वेगम की किश्ती क्योंकर आई और क्या-क्या हुआ तथा मैंने किसको किस तरह गिरफ्तार किया-संक्षेप में केवल इतना ही कहूँगा कि बेगम पर मैंने कब्जा कर लिया और जो चीजें उसके पास थीं, सब ले ली गयीं। उन्हीं चीजों में ये सब कागज और वह हीरे की अंगूठी भी जो भूतनाथ बेगम के यहाँ से ले आया और जो इस समय दरबार में मौजूद हैं । आगे चलकर मैं इन चीजों का हाल बयान करूँगा और यह भी कहूँगा कि ये सब चीजें मेरे कब्जे में आकर फिर क्योंकर निकल गई। इस समय मैं पुनः गिरिजाकुमार का हाल बयान करूँगा जो उसी की जुबानी मुझे मालूम हुआ था।