पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२२८

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रहा है। दोनों हाथ बल्कि नाखून तक चपकन की आस्तीन में घुसा हुआ है और पैर के जूते की भी विचित्र सूरत हो रही है । भूतनाथ का मतलब चाहे कुछ भी क्यों न हो, मगर लोग इसे केवल मसखरापन ही समझ रहे हैं ।

सबके पहले पन्नालाल उस मकान की दीवार पर चढ़ गये और अन्दर की तरफ झांककर देखने लगे, मगर पांच-सात पल से ज्यादा अपने को न बचा सके और हँसते हुए अन्दर की तरफ कूद पड़े।

इसके बाद पंडित बद्रीनाथ, रामनारायण और चुन्नीलाल ने कोशिश की, मगर ये तीनों भी लौटकर न आ सके और पन्नालाल की तरह हंसते हुए अन्दर कूद पड़े।

इसके बाद और ऐयारों ने भी उद्योग किया, मगर कोई सफल-मनोरथ न हुआ। यहाँ तक कि जीतसिंह, तेजसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह को छोड़कर सभी ऐयार बारी-बारी से जाकर मकान के अन्दर कूद पड़े, केवल भूतनाथ रह गया जिसने सबके आखीर में चढ़ने का इरादा कर लिया था।

भूतनाथ मस्तानी चाल से चलता हुआ सीढ़ी के पास गया और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा। देखते ही देखते वह दीवार के ऊपर जा पहुंचा। उस पर खड़े होकर एक दफे चारों ओर मैदान की तरफ देखा और इसके बाद मकान के अन्दर की तरफ झांका । यहाँ जो कुछ था उसे देखने के बाद उसने अपना चेहरा उस तरफ किया, जिधर खिड़कियों में बैठे हुए महाराज और राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह बड़े शौक से उसकी कैफियत देख रहे थे ।

भूतनाथ ने हाथ उठाकर तीन दफे महाराज को सलाम किया और जोर से पुकार कर कहा, "मैं इसके अन्दर झांक कर देख चुका और बड़ी देर तक दीवार पर खड़ा भी रहा, अब हुक्म हो तो नीचे उतर जाऊँ !"

महाराज ने नीचे उतर आने का इशारा किया और भूतनाथ मुस्कुराता हुआ,मकान के नीचे उतर आया, इस बीच में और ऐयार लोग भी जो भूतनाथ के पहले मकान के अन्दर कूद चुके थे, घूमते हुए बड़े तिलिस्सी मकान के अन्दर से आ पहुँचे और भूतनाथ की कैफियत देख-सुनकर ताज्जुब करने लगे।

भूतनाथ के उतर आने के बाद सब ऐयार मिल-जुलकर महाराज के पास गये और महाराज ने प्रसन्न होकर भूतनाथ को दो लाख रुपए इनाम देने का हुक्म दिया। सभी ऐयारों को इस बात का ताज्जुब था कि उस तिलिस्म का असर भूतनाथ पर क्यों नहीं हुआ और वह कैसे सभी को बेवकूफ बनाकर आप बुद्धिमान बन बैठा और दो लाख का इनाम भी पा गया।

जीतसिंह--भूतनाथ, यह तुमने क्या किया कौन-सी तरकीब निकाली जिससे इस तिलिस्मी हवा का तुम पर कुछ भी असर न हुआ?

भूतनाथ--बात मामूली है, जब तक मैं नहीं कहता तभी तक आश्चर्य मालूम पड़ता है।

तेजसिंह--आखिर कुछ कहो भी तो सही।

भूतनाथ--मेरे दिल को इस बात का निश्चय हो गया था कि इस मकान के अन्दर से किसी तरह की हवा, भाफ या धुआं ऊपर की तरफ जरूर उठता है जो झाँक दर देखने