पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३८

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इन्द्रजीतसिंह-जी हाँ, हम लोग इसमें बहुत दूर तक जाकर घूम आये हैं ।

सुरेन्द्रसिंह --यह भेद तुम्हें क्योंकर मालूम हुआ ?

इन्द्रजीतसिंह--उसी 'रिक्तगन्थ' की बदौलत हम दोनों भाइयों को इन सब जगहों का हाल और भेद पूरा-पूरा मालूम हो चुका है। यदि आज्ञा हो तो दरवाजा खोलकर मैं आपको रोहतासगढ़ के तहखाने में ले जा सकता हूँ। वहाँ के तहखाने में भी एक छोटा-सा तिलिस्म है, जो इसी बड़े तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है और हम लोग उसे खोल या तोड़ भी सकते हैं परन्तु अभी तक ऐसा करने का इरादा नहीं किया।

सुरेन्द्रसिंह--उस रोहतासगढ़ वाले तिलिस्म के अन्दर क्या चीज है ?

इन्द्रजीतसिंह-उसमें केवल अनूठे अद्भुत आश्चर्य गुण वाले हर्षे रखे हुए हैं,उन्हीं हरबों पर वह तिलिस्म बँधा है। जैसा तिलिस्मी खंजर हम लोगों के पास है या जैसे तिलिस्मी जिरह-बख्तर और हरबों की बदौलत राजा गोपालसिंह ने कृष्ण जिन्न का रूप धरा था, वैसे हरबों और असबाबों का तो वहां ढेर लगा हुआ है, हाँ, खजाना वहाँ कुछ भी नहीं है

सुरेन्द्रसिंह-ऐसे अनूठे हर्के खजाने से क्या कम हैं ?

जीतसिंह–वेशक ! (इन्द्रजीतसिंह से) जिस हिस्से को तुम दोनों भाइयों ने तोड़ा है, उसमें भी तो ऐसे अनूठे हरबे होंगे?

इन्द्रजीतसिंह-जी हाँ, मगर बहुत कम हैं।

वीरेन्द्रसिंह--अच्छा यदि ईश्वर की कृपा हुई तो फिर किसी मौके पर इस रास्ते से रोहतासगढ़ जाने का इरादा करेंगे। (मकान की सजावट और परदों की तरफ देखकर) क्या यह सब सामान, कन्दील, पर्दे और बिछावन वगैरह तुम लोग तिलिस्म के अन्दर से लाए थे?

इन्द्रजीतसिंह-जी नहीं, जब हम लोग यहां आए, तो इस बंगले को इसी तरह सजा-सजाया पाया और तीन-चार आदमियों को भी देखा जो इस बंगले की हिफाजत और मेरे आने का इन्तजार कर रहे थे।

सुरेन्द्रसिंह-(ताज्जुब से) वे लोग कौन थे और अब कहां हैं ?

इन्द्रजीतसिंह--दरियाफ्त करने पर मालूम हुआ कि वे लोग इन्द्रदेव के मुलाजिम थे, जो इस समय अपने मालिक के पास चले गए हैं। इस तिलिस्म का दारोगा असल इन्द्रदेव है, और आज के पहले भी इसी के बुजुर्ग लोग दारोगा होते आए हैं।

सुरेन्द्रसिंह-यह तुमने बड़ी खुशी की बात सुनाई, मगर अफसोस यह है कि इन्द्रदेव ने हमें इन बातों की कुछ भी ख़बर न की। आनन्दसिंह-अगर इन्द्रदेव ने इन सब बातों को आपसे छिपाया, तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है, तिलिस्मी कायदे के मुताबिक ऐसा होना ही चाहिए था।

सुरेन्द्रसिंह --ठीक है, तो मालूम होता है कि यह सब सामान तुम्हारी खातिर-दारी के लिए इन्द्रदेव की आज्ञानुसार किया गया है।

आनन्दसिंह-जी हाँ, उसके आदमियों की जबानी मैंने भी यही सुना है ।

इसके बाद बड़ी देर तक ये लोग इन तस्वीरों को देखते और ताज्जुब भरी बातें