पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/५९

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महाराज--ठीक है, मैं भी इस बात को पसन्द करता हूँ और यह भी चाहता हूँ कि चुनार पहुँचने के पहले ही तुम्हारे विचित्र स्थान की सैर कर लूं। चीजों की फेहरिस्त और उनका पता इन्द्रजीतसिंह तुमको देंगे।

इतना कह कर महाराज ने इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखा और कुमार ने उन सब चीजों का पता इन्द्रदेव को बताया जिन्हें बाहर निकाल कर घर पहुंचाने की आवश्यकता थी और साथ-ही-साथ अपना तिलिस्मी किस्सा भी जिसके कहने की जरूरत थी, इन्द्रदेव से बयान किया और बाद में दूसरी बातों का सिलसिला छिड़ा।

वीरेन्द्र सिंह--(इन्द्रदेव से) आपने कहा था कि "मैं कई तमाशे भी साथ लाया हूं" तो क्या वे तमाशे ढंके ही रह जायेंगे।

इन्द्रदेव--जी नहीं ! आज्ञा हो तो अभी उन्हें पेश करूँ, परन्तु यदि आप मेरे मकान पर चल कर उन तमाशों को देखेंगे तो कुछ विशेष आनन्द मिलेगा।महाराज-यही सही, हम लोगअभी तुम्हारे मकान पर चलने के लिए तैयार हैं।

इन्द्रदेव--अब रात बहुत चली गई है, महाराज दो-चार घण्टे आराम कर लें,दिन-भर की हरारत मिट जाय, जब कुछ रात बाकी रह जायेगी, तो मैं जगा दूंगा और अपने मकान की तरफ ले चलूंगा।तब तक मैं अपने साथियों को वहाँ रवाना कर देता हूँ जिसमें आगे चल कर सभी को होशियार कर दें और महाराज के लिए हरएक तरह का सामान दुरुस्त हो जाय। इन्द्रदेव की बात को महाराज ने पसन्द करके सभी को आराम करने की आज्ञा दी और इन्द्रदेव भी वहाँ से बिदा होकर किसी दूसरी जगह चला गया।

इधर--उधर की बातचीत करते-करते महाराज को नींद आ गई । वीरेन्द्रसिंह,दोनों कुमार और राजा गोपालसिंह भी सो गये तथा और ऐयारों ने भी स्वप्न देखना आरम्भ किया। मगर भूतनाथ की आंखों में नींद का नाम-निशान भी न था और वह तमाम रात जागता ही रह गया ।

जब रात घण्टे-भर से ज्यादा बाकी रह गई और सुबह को अठखेलियों के साथ चल कर खुशदिलों तथा नौजवानों के दिलों में गुदगुदी पैदा करने वाली ठंडी-ठंडी हवा ने खुशबूदार जंगली फूलों और लताओं से हाथापाई करके उनकी सम्पत्ति छीनना और अपने को खुशबूदार बनाना शुरू कर दिया तब इन्द्रदेव भी उस बारहदरी में आ पहुंचा और सभी को गहरी नींद में सोते देख जगाने का उद्योग करने लगा। इस बारहदरी के आगे को तरफ एक छोटा-सा सहन था जिसकी जमीन संगमूसा के स्याह और चौखूटे पत्थरों से मढ़ी हुई थी। इस सहन के दाहिने और बाएँ कोनों पर दो-तीन आदमी बखूबी बैठ सकते थे। इन्द्रदेव दाहिने तरफ वाले सिंहासन पर जाकर बैठ गया और उसके पायों को बारी-बारी से किसी हिसाब से घुमाने या उमेठने लगा। उसी समय सिंहासन के अन्दर से सरस और मधुर बाजे की आवाज आने लगी और थोड़ी ही देर बाद गाने की आवाज भी पैदा हुई। मालूम होता था कि कई नौजवान औरतें बड़ी खूबी के साथ गा रही हैं और कई आदमी पखावज-बीन-वंशी-मजीरा इत्यादि बजा कर उन्हें मदद पहुंचा रहे हैं। यह आवाज धीरे-धीरे बढ़ने और फैलने लगी, यहाँ तक कि उस बारहदरी में