पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
82
 

मालूम हुआ था।

इतना कहकर दलीपशाह ने फिर अपना बयान शुरू किया-

दलीपशाह--जैसाकि भूतनाथ भी कह चुका है, बहुत मिन्नत और खुशामद से लाचार होकर मैंने कसूरवार होने और माफी मांगने की चिट्ठी लिखाकर इसे छोड़ दिया और इसका ऐब छिपा रखने का वादा करके अपने साथियों को साथ लिए उस घर से बाहर निकल गया और भूतनाथ की इच्छानुसार दयाराम की लाश को और भूतनाथ को उसी मकान में छोड़ दिया। फिर मुझे नहीं मालूम कि क्या हुआ और इसने दयाराम की लाश के साथ कैसा बर्ताव किया।

वहाँ से बाहर होकर मैं इन्द्रदेव की तरफ रवाना हुआ, मगर रास्ते भर सोचता जाता था कि अब मुझे क्या करना चाहिए, दयाराम का सच्चा-सच्चा हाल इन्द्रदेव से बयान करना चाहिए या नहीं । आखिर हम लोगों ने निश्चय कर लिया कि जब भूतनाथ से वादा कर चुके हैं तो इस भेद को इन्द्रदेव से भी छिपा ही रखना चाहिए।

जब हम लोग इन्द्रदेव के मकान में पहुंचे तो उन्होंने कुशल-मंगल पूछने के बाद दयाराम का हाल दरियाफ्त किया जिसके जवाब में मैंने असल मामले को तो छिपा रखा और बात बनाकर यों कह दिया कि कुछ मैंने या आपने सुना था, वह ठीक ही निकला अर्थात् राजसिंह ही ने दयाराम के साथ वह सलूक किया और दयाराम राजसिंह के घर में मौजूद भी थे, मगर अफसोस, बेचारे दयाराम को हम लोग छुड़ा न सके और वे जान से मारे गये !

इन्द्रदेव--(चौंककर) हैं ! जान से मारे गये !

मैं जी हां, और इस बात की खबर भूतनाथ को भी लग चुकी थी। मेरे पहले ही भूतनाथ, राजसिंह के उस मकान में जिसमें दयाराम को कैद कर रखा था, पहुँच गया और उसने अपने सामने दयाराम की लाश देखी जिसे कुछ ही देर पहले राज सह ने मार डाला था, तब भूतनाथ ने उसी समय राजसिंह का सिर काट डाला। सिवाय इसके वह और कर ही क्या सकता था!इसके थोड़ी देर बाद हम लोग भी उस घर जा पहुंचे और दयाराम तथा राजसिंह की लाश और भूतनाथ को वहां मौजूद पाया, दरियाफ्त करने पर भूतनाथ ने सब हाल बयान किया और अफसोस करते हुए हम लोग वहाँ से रवाना हुए।

इन्द्रदेव--अफसोस ! बहुत बुरा हुआ ! खैर, ईश्वर की मर्जी !

मैंने भूतनाथ के ऐब को छिपाकर जो कुछ इन्द्रदेव से कहा, भूतनाथ की इच्छानुसार ही कहा था। भूतनाथ ने भी यही बात मशहूर की और इस तरह अपने ऐब को छिपा रखा।

यहां तक भूतनाथ का किस्सा कहकर जब दलीपशाह कुछ देर के लिए चुप हो गया तब तेजसिंह ने उससे पूछा, "तुमने तो भला भूतनाथ की बात मानकर उस मामले को छिपा रखा, मगर शम्भू वगैरह इन्द्रदेव के शागिर्दो ने अपने मालिक से उस भेद को क्यों छिपाया?"

दलीपशाह--(एक लम्बी साँस लेकर) खुशामद और रुपया बड़ी चीज है । बस,