पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८५

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सामने पेश करूंगा और सम्भव है कि महाराज उसे सुन-सुनाकर यादगार के तौर पर अपने खजाने में रखने की आज्ञा देंगे । इस एक महीने के बीच में मुझे भी सब बातें याद करके लिख लेने का मौका मिलेगा और मैं अपनी निर्दोष स्त्री तथा उन लोगों से जिन्हें देखने की भी आशा नहीं थी, परन्तु जो बहुत-कुछ दुःख भोगकर भी दोनों कुमारों की बदौलत इस समय यहाँ आ गये हैं और जिन्हें मैं अपना दुश्मन समझता था, मगर अब महाराज की कृपा से जिन्होंने मेरे कसूरों को माफ कर दिया है, मिल-जुलकर कई बातों का पता भी लगा लूंगा, जिससे मेरा किस्सा सिलसिलेवार और कायदे से हो जायगा।"

इतना कहकर भूतनाथ ने इन्द्रदेव, राजा गोपालसिंह, दोनों कुमारों और दलीप- शाह वगैरह की तरफ देखा और तुरन्त ही मालूम कर लिया कि उसकी अर्जी कबूल कर ली जायगी।

महाराज ने कहा, "कोई चिन्ता नहीं, तब तक हम लोग कई जरूरी कामों से छुट्टी पा लेंगे।" राजा गोपालसिंह और इन्द्रदेव ने भी इस बात को पसन्द किया और इसके बाद इन्द्रदेव ने दलीपशाह की तरफ देखकर पूछा, "क्यों दलीपशाह, इसमें तुम लोगों को कोई उज्र तो नहीं है ?"

दलीपशाह--(हाथ जोड़कर) कुछ भी नहीं, क्योंकि अब महाराज की आज्ञा- नुसार हम लोगों को भूतनाथ से किसी तरह की दुश्मनी भी नहीं रही और न यही उम्मीद है कि भूतनाथ हमारे साथ किसी तरह की खुटाई करेगा, परन्तु मैं इतना जरूर कहूँगा कि हम लोगों का किस्सा भी महाराज के सुनने लायक है और हम लोग भूतनाथ बाद अपना किस्सा भी सुनाना चाहते हैं।

महाराज--निःसन्देह तुम लोगों का किस्सा भी सुनने योग्य होगा और हम लोग उसके सुनने की अभिलाषा रखते हैं । यदि सम्भव हुआ तो पहले तुम्हीं लोगों का किस्सा सुनने में आवेगा । मगर सुनो दलीपशाह, यद्यपि भूतनाथ से बड़ी-बड़ी बुराइयाँ हो चुकी हैं और भूतनाथ तुम लोगों का भी कसूरवार है, परन्तु इधर हम लोगों के साथ भूतनाथ ने जो कुछ किया है, उसके लिए हम लोग इसके अहसानमन्द हैं और इसे अपना हितू समझते हैं।

इन्द्रदेव--बेशक-बेशक !

गोपाल सिंह-जरूर हम लोग इसके अहसान के बोझ से दबे हुए हैं।

दलीपशाह--मैं भी ऐसा ही समझता हूँ । भूतनाथ ने इधर जो-जो अनूठे काम किए हैं, उनका हाल कुँअर साहब की जुबानी हम लोग सुन चुके हैं। इसी खयाल से तथा कुंअर साहब की आज्ञा से हम लोगों ने सच्चे दिल से भूतनाथ का अपराध क्षमा ही नहीं कर दिया बल्कि कुअर साहब के सामने इस बात की प्रतिज्ञा भी कर चुके हैं कि भूतनाथ को दुश्मनी की निगाह से कभी न देखेंगे ।

महाराज--बेशक, ऐसा ही होना चाहिए, अतः बहुत-सी बातों को सोचकर और इसकी कार गुजारी पर ध्यान देकर हमने इसके सब कसूर माफ करके इसे अपना ऐयार बना लिया है, आशा है कि तुम लोग भी इसे अपनायत की निगाह से देखोगे और पिछली बातों को बिल्कुल भूल जाओगे ।