पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९३

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लगी । भूतनाथ की बुरी अवस्था हो रही थी और इससे ज्यादे वह उस भयानक घटना का हाल नहीं सुनना चाहता था । वह यह कहता हुआ कि 'बस माफ करो, अब इसका जिक्र न करो' अपनी स्त्री शान्ता के पैरों पर गिरा ही चाहता था कि उसने पैर खींचकर भूतनाथ का सिर थाम लिया और कहा-'हाँ-हाँ, यह क्या करते हो ? क्यों मेरे सिर पर पाप चढ़ाते हो? मैं खूब जानती हूँ कि आपने उसे बिलकुल नहीं पहचाना मगर इतना जरूर समझते थे कि वह दलीपशाह का लड़का है, अतः फिर भी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, खैर अब मैं इस जिक्र को छोड़ देती हूँ।"

इतना कहकर शान्ता ने अपने आँसू पोंछे और फिर इस तरह बयान करना शुरू किया-

"शोक और दुःख से मैं पुनः बीमार पड़ गई, मगर आशा-लता ने धीरे-धीरे कुछ दिन में अपनी तरह मुझे भी (आराम) कर दिया। यह आशा केवल इसी बात की थी कि एक दफे आपसे जरूर मिलूंगी। मुश्किल तो यह थी कि उस घटना ने दलीपशाह को भी आपका दुश्मन बना दिया था, केवल उस घटना ने ही नहीं, इसके अतिरिक्त भी दलीपशाह को बर्बाद करने में आपने कुछ उठा न रक्खा था, यहाँ तक कि आखिर वह दारोगा के हाथ फंस ही गये।"

भूतनाथ—-(बेचैनी के साथ लम्बी साँस लेकर) ओफ ! मैं कह चुका हूँ कि इन बातों को मत छेड़ो, केवल अपना हाल बयान करो, मगर तुम नहीं मानतीं !

शान्ता--नहीं-नहीं, मैं तो अपना ही हाल बयान कर रही हूँ, खैर, मुख्तसिर ही में कहती हूँ।

उस घटना के बाद ही मेरी इच्छानुसार दलीपशाह ने मेरा और बच्चे का मर जाना मशहूर किया जिसे सुनकर हरनामसिंह और कमला भी मेरी तरफ से निश्चिन्त हो गये । जब खुद दलीपशाह भी दारोगा के हाथ में फंस गये, तब मैं बहुत ही परेशान हुई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। उस समय दलीपशाह के घर में उनकी स्त्री, एक छोटा सा बच्चा और मैं, केवल ये तीन ही आदमी रह गये थे। दलीपशाह की स्त्री को मैंने धीरज धराया और कहा कि अभी तू अपनी जान मत बर्बाद कर, मैं बराबर तेरा साथ दूंगी और दलीपशाह को खोज निकालने का उद्योग करूँगी मगर अब हमलोगों को यह घर एकदम छोड़ देना चाहिए और ऐसी जगह छिपकर रहना चाहिए जहाँ दुश्मनों को हम लोगों का पता न लगे । आखिर ऐसा ही हुआ, अर्थात् हम लोगों की जो कुछ जमा-पूँजी थी उसे लेकर हमने उस घर को एक दम छोड़ दिया और काशीजी में जाकर एक अँधेरी गली में पुराने और गंदे मकान में डेरा डाला, मगर इस बात की टोह लेते रहे कि दलीपशाह कहाँ हैं अथवा छूटने के बाद अपने घर की तरफ जा कर हम लोगों को ढूंढ़ते हैं या नहीं। इस फिक्र में मैं कई दफे सूरत बदल कर बाहर निकली और इधर-उधर घूमती रही। इत्तिफाक से दिल में यह बात पैदा हुई कि किसी तरह अपने लड़के हरनामसिंह से छिप कर मिलना और उसे अपना साथी बना लेना चाहिए। ईश्वर ने मेरी यह मुराद पूरी की। जब माधवी कुंअर इन्द्रजीतसिंह को फंसा ले गई और उसके बाद उसने किशोरी पर भी कब्जा कर लिया, तब कमला और हरनाम सिंह दोनों आदमी