पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९८

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इन्द्रदेव का यह स्थान बहुत बड़ा था। इस समय यहां जितने आदमी आए हुए हैं उनमें से किसी को किसी तरह की भी तकलीफ नहीं हो सकती थी और इसके लिए प्रबन्ध भी ब अच्छा कर रक्खा गया था। औरतों के लिए एक खास कमरा मुकर्रर किया गया था मगर रामदेई (नानक की माँ) की निगरानी की जाती थी और इस बात का भी बन्दोबस्त कर रक्खा गया था कि कोई किसी के साथ दुश्मनी का बर्ताव न कर सके । महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह और दोनों कुमारों के कमरे के आगे पहरे का पूरा-पूरा इन्तजाम था और हमारे ऐयार लोग भी बराबर चौकन्ने रहा करते ये ।

यद्यपि भूतनाथ एकान्त में बैठा हुआ अपनी स्त्री से बातें कर रहा था, मगर यह बात इन्द्रदेव और देवीसिंह से छि हुई न थी जो इस समय बगीचे में टहलते हुए बातें कर रहे थे । इन दोनों के देखते ही देखते नानक भूतनाथ की तरफ गया और लौट आया इसके बाद भूतनाथ की स्त्री अपने डेरे पर चली गई और फिर रामदेई, अर्थात् नानक की मां, भूतनाथ की तरफ जाती हुई दिखाई पड़ी। उस समय इन्द्रदेव ने देवीसिंह से कहा, "सिंहजी, देखिये भूतनाथ अपनी पहली स्त्री से बातचीत कर चुका है, अब उसने नानक की मां को अपने पास बुलाया है । शान्ता की जुबानी उसकी खुटाई का सारा हाल तो उसे जरूर मालूम हो ही गया होगा, इसलिए ताज्जुब नहीं कि वह गुस्से में आकर रामदेई के हाथ-पैर तोड़ डाले !"

देवीसिंह-ऐसा हो तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है, मगर उस औरत ने भी तो सजा पाने के ही लायक काम किया है।

इन्द्रदेव--ठीक है, मगर इस समय उसे बचाना चाहिए ।

देवीसिंह--तो जाइए वहां छिप कर तमाशा देखिए और मौका पड़ने पर उसकी सहायता कीजिए । (मुस्कुराकर) आप ही आग लगाते हैं फिर आप ही बुझाने दौड़ते हैं ।

इन्द्रदेव--(हंस कर) आप तो दिल्लगी करते हैं ।

देवीसिंह--दिल्लगी काहे की? क्या आपने उसे गिरफ्तार नहीं कराया है और अगर गिरफ्तार कराया है तो क्या इनाम देने के लिए ?

इन्द्रदेव--(मुस्कुराते हुए) तो आपकी राय है कि इसी समय उसकी मरम्मत की जाय !

देवीसिंह–-चाहिए तो ऐसा ही ! जी में आवे तो तमाशा देखने चलिए । कहिए तो मैं आपके साथ चलूं।

इन्द्रदेव--नहीं-नहीं, ऐसा न होना चाहिए । भूतनाथ आपका दोस्त है और अब तो नातेदार भी । आप ऐसे मौके पर उसके सामने जा सकते हैं । जाइए और उसे बचाइए, मेरा जाना मुनासिब न होगा।

देवीसिंह--(हँस कर) तो आप चाहते हैं कि मैं भी भूतनाथ के हाथ से दो-एक घूमे खा लूं ? अच्छा साहब जाता हूँ, आपका हुक्म कैसे टालूं, आज आपने बड़ी-बड़ी बातें