पृष्ठ:चतुरी चमार.djvu/३९

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निराला



 

थानेदार साहब ने लिखा—"जान पड़ता है, यह कोई क्रान्तिकारी था, बम लिए जा रहा था, एकाएक बम के धड़ाके से काम आ गया है।"

डाक्टर की परीक्षा में ज़ख़्मों के भीतर से सीसे के कुछ नुकीले टुकड़े भी मिले।

 

राजा साहब को ठेंगा दिखाया


लोग कहते हैं, ऐसा लिखा जाय कि एक मतलब हो, उसी वक़्त समझ में आ जाय, अनपढ़ लोग भी समझें। बात बहुत सीधी है। मुझे एक उदाहरण याद आया। लिखता हूँ। यह लिखा हुआ, उद्धृत नहीं, देखा हुआ है। तब तक आप लोग ठेंगा दिखाने का मुहावरा याद रक्खें।

बंगाल और उड़ीसा को जोड़नेवाली एक नहर है। रूपनारायण (नद) से काटकर कटक तक निकाली गई है। यह केवल आबपाशी के लिये नहीं, इससे व्यवसाय भी होता है, बड़ी-बड़ी नावें चलती हैं।

इसके किनारे पद्मदल राजधानी है। राजा साहब के छोटे-छोटे स्टीमर, बोट, लांच, बजरे, किश्ती, डोंगी आदि राजधानी के पास चौड़ी की हुई नहर के एक तरफ़ बँधी रहती हैं।

जेठ का महीना, सूरज डूब रहे हैं। ज़ोरों से बहती हुई मलय-वायु में षोड़शी का स्पर्श मिलता है। यह अकेली दक्षिणी हवा बंगाल की आधी कविता है। प्रासाद-शिखरों से सुनहली किरणें लिपटी हैं, उन्हीं के प्रेम की साँस जैसे दक्षिणी हवा में बह रही है। बड़े-बड़े तालाबों में श्वेत और रक्त कमल, खुले हुए अनुभव-जैसे, लोट रहे हैं। स्वच्छ, क़ीमती, चौड़ी किनारीवाली, बारीक, ठोस-बुनी, बँगला-ढंग से कोंछीदार