पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१०९

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दूसरा हिस्सा
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दूसरा हिस्ता झौत० ! क्या घोड़ा आगे नहीं जा सकता है पहिला० । घोड़ा श्रागे जा सकता है मगर मैं दूसरी ही यति सोच कर आपको उतरने के लिए कहता हूँ । कोत० } घह क्या ? | पहिला० । जिस औरत के पास श्राप श्राये हैं वह इसी जगह है, दो ही कदम आगे बढने से आप उसे बखूची देख सकते हैं, मगर मैं चाहता हूँ कि सिवाय आपके ये दोनों प्यादे उसे देखनै न पावें । इसके लिए, में किसी तरह जौर नहीं दे सकती मगर इतना जरूर कहूँ ग? । कि आप जरा सी श्रीगे बढ़ झांक कर उसे देख लें फिर अगर जी चाहे सो इन दोनों को भी अपने साथ ले जाय, क्योंकि वह अपने को 'गया' की रानी बताती है ।। फोत• 1 ( ताज्जुब से ) अपने को गया की रानी बताती है ! दूसरा ० ] जी हाँ । अब तो कोतवाल माह के दिल में कोई दूसरा ही पैदा हुआ। वह तरह तरह की बातें सोचने लगे । “शया की रानी तो हमारी माधवी है, यह दूसरी कहा से चैदा हुई ! क्या वही माधवी तो नहीं है ? नदी नहीं, वह भला यहा क्यों अाने लगी ! उससे मुझसे क्या सम्बन्ध है ? वद् तो दीवान साहब को हो रही है। मगर वह शाई भी हो तो कोई ताजुस नहीं, क्योंकि एक दिन हम तीनों दोस्त एक साथ मइल में बैठे थे र रानी माधवी वहां पहुंच गई थी, मुझे खूब याद है कि उस दिन उसने मेरी तरफ चेदन तरह से देखा था और दीवान साहब की शाँख यचा वटी घड़ी देती थी, शायद उसी दिन से मुझ पर अधिक है। गई हो । इय, वह अर्नव चितवन मुझे फ) न भूलेगी ! अहो, अगर यह वही है गर मुझे विश्वास हो जाये फि वह मुझसे प्रेम रखती है तो क्या बात है। में ही राजा हो जाऊँ और दीवान साझ को चो बात की बत में खपा द्, मगर ऐसी किस्मत कहाँ १ तैर जो है। इनकी बात मान