पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
१०
 

बाबा कही इन्द्रजीतसिंह,तुम्हारे भाई और दोनों ऐयार कहाँ रह गए,वे नहीं आए? इन्द्र०।हमारे छोटे भाई आनन्द को बुखार आ गया।इस सबब से वह न या सका।उसी की हिफा नत में दोनों ऐयारों को छोड मैं अकेला आपके दर्शन को आया हूँ!

वावा०।अच्छा क्या हर्ज है,आज शाम तक वह अच्छे हो जायेंगे,कहो आज कल तुम्हारे राज्य में कुशल तो है?

इन्द्र०।आपकी कृपा से सब ग्रानन्द है।

वावा०।बेचारे वीरेन्द्रसिंह ने भी बड़ा ही कष्ट पायो!खैर जो हो दुनिया।उनका नाम रह जायगा।इस हजार वर्ग के अन्दर कोई ऐसा सजा नहीं है जिसने तिलिस्म ताड़ हो!एक और तिलिस्म है,असल में वही भरी और तारीफ के लायक है।।

एन्द्र०।पिताजी तो कहते हैं कि वह तिलिस्म तेरे हाथ से टूटेगा।

वावा०।हाँ ऐसा ही होगा,वह जरूर तुम्हारे हाथ से फतह होगा,सभे केाई मन्दे नए।

इन्द्र०।देखें कर तक ऐसा होता है,उसकी ताली का तो कही पता ही नहीं लगता।

बावा°। ईश्वर चाहेंगा तो एक ही दो दिन तक तुम उस तिलिस्म के होने में हाथ लगा दोगे।उस तिलिस्म की ताली में हूं।कई पुश्त ने हम लोगों उस तिलिस्म के दागी होते चले आए हैं।मेरे परदादा दाट श्री बाप उमी तिलिस्म के दारोगा,जब मेरे पिता का देहान्तने लगा तो हैन को ताली मेरे सुपुर्द कर मुझे उसका दारोगा मुररर:दिइ।अप वर उतर आ गया है कि में उस ताला तुम्हारे या वह निन्मि तुग्गु नाम पर वाया गया है और मित नुरा’ र ? उमा मानिस' नद्दा पन मना है। • १ २ १ देर का है ?